अनोखा रिश्ता
किदवईनगर चौराहे पर टेम्पो से उतर कर जैसे ही आगे बढ़ा तो तीन चार रिक्शे वाले मेरी तरफ बढ़ते हुए बोले, “आओ बाबू, के-ब्लॉक” सुबह शाम की वही सवारियाँ और चौराहे के वही रिक्शेवाले। सब एक दूसरे के चेहरे को पहचानने लगते हैं। जिन रिक्शो पर बैठ कर मैं शाम को घर तक पहुँचता था…