गाँधी जी के जीवन की 4 अनसुनी कहानी
भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी बहुत ही अनुशासित और down to earth मानव थे | Mahatma Gandhi ने अपने पूरे जीवन भर सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चले और और लोगो को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलना सिखाया | भारत में चाहे जितना भी राजनीतिक परिवर्तन आया हो लेकिन गाँधी के आदर्श को अपनाने का होड़ अभी भी जारी है | किसी भी पार्टी या नेता ने गाँधी के आदर्श को दरकिनार करने का प्रयास भी नहीं किया है |
गाँधी जी के वक्तित्व का असर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व में हुआ है | नेल्सन मंडेला गाँधी को अपना गुरु मानते थे | मार्टिन लूथर किंग जूनियर भी अपने जीवन में गाँधी के बताये रस्ते पर चल कर अमेरिका जैसे देश को बहुत बड़ी मानसिक बिमारी से आज़ाद करवाया |
गाँधी जी के जीवन से जुड़ी कई कहानी हम स्कूल के दिन में पढ़ चुके है ,” जिसमें शिक्षक के कहने पर भी परीक्षा में चीटिंग नहीं करना ” प्रमुख है | जब भी कोई परीक्षा में चोरी करता है शिक्षक गाँधी जी कि यही कहानी बताते है |
आज मैं आपको गाँधी जी के जीवन से जुडी कुछ 3 अनसुनी कहानी बताने वला हूँ |
1. गलती की है तो माफ़ी माँगो
गाँधी जी एक बार अपनी यात्रा पर निकले थे. तब उनके साथ उनके एक अनुयायी आनंद स्वामी भी थे. यात्रा के दौरान आनंद स्वामी की किसी बात को लेकर एक व्यक्ति से बहस हो गई और जब यह बहस बढ़ी तो आनंद स्वामी ने गुस्से में उस व्यक्ति को एक थप्पड़ मार दिया.
जब गाँधी को इस बात का पता चला तो उन्हें आनंद जी की यह बात बहुत बुरी लगी. उन्हें आनंद जी का एक आम आदमी को थप्पड़ मारना अच्छा नहीं लगा.
इसलिए उन्होंने आनंद जी को बोला की वह इस आम आदमी से माफ़ी मांगे. गाँधी जी ने उनको बताया की अगर यह आम आदमी आपकी बराबरी का होता तो क्या आप तब भी इन्हें थप्पड़ मार देते.
गाँधी जी की बात सुनकर आनंद स्वामी को अपनी गलती का अहसास हुआ. उन्होंने उस आम आदमी से इस बात को लेकर माफ़ी मांगी.
लेकिन अगर वही कोई उनके टक्कर का आदमी होता तो वे उसके साथ ऐसा करने से पहले कई बार सोचते. इसलिए हमें कभी भी किसी गरीब या लाचार आदमी से लड़ना नहीं चाहिए. अगर कभी ऐसी गलती हो भी जाए तो विनम्रता से उस व्यक्ति से माफ़ी मांग ले.
2.कर्म बोओ और आदत काटो
एक बार गाँधी जी एक गांव कि यात्रा पर थे | गाँधी जी जब गांव पहुँचे तो गाँधी जी का दर्शन करने के लिए लोगों का भीड़ लग गया | गाँधी जी ने लोगों से पूछते है इस समय आप लोग कौन सा फसल बो रहे है और किस फसल कि कटाई कर रहे है ?
भीड़ से एक वृद्ध निकला और हाथ जोड़कर बोलता है ” आप तो ज्ञानी है क्या आपको इतना भी मालूम नहीं है की अभी जेठ का महीना चल रहा है, अभी तो कोई फसल नहीं होती है और हमलोग के पास काम नहीं होता है |
गाँधी जी बोले ” जब फसल बोन का समय होता है तब तो बिल्कुल समय नहीं रहता होगा “
वृद्ध ” बिल्कुल भी नहीं , खाने का भी समय नहीं मिलता है “
गाँधी जी बोले तो इस समय तुमलोग बिल्कुल निठल्ले बैठे हुए हो और गपे हाँक रहे हो , यदि तुमलोग चाहो तो अभी भी कुछ बो सकते हो और कुछ काट सकते हो “
गांव वाले एक स्वर में बोले आप ही बता दीजिए क्या बोऊँ और क्या काटूँ
गाँधी जी बोले ” आपलोग कर्म बोइये और आदत काटिये, आदत बोइये और चरित्र काटिये, चरित्र बोइये और भाग्य काटिये ,तभी तुम्हारा जीवन सार्थक हो पायेगा |
3.देश सेवा की सच्ची भावना
गांधीजी साबरमती आश्रम में रहते थे , यह उस समय की बात है जो अब असहयोग का आंदोलन आरंभ हो गया था। लोगों में देश प्रेम की भावना आने लगी थी और उन्होंने अंग्रेजों को देश से निकाल भगाने और स्वदेशी अपनाने की ठान ली थी।
एक नवयुवक गांधी जी के पास आया और उसने अपना परिचय देते हुए कहा –
मैं ! पढ़ा लिखा हूं , अंग्रेजी जानता हूं , उच्च कुलीन हूं , कृपया आप मेरे स्तर का कोई कार्य बताइए ! मैं देश सेवा करने का जज्बा रखता हूं और मैं आपको असहयोग आंदोलन में सहायता करना चाहता हूं।
गांधीजी धैर्य से उस युवक का पूरा परिचय सुनते रहे किंतु ज्यों ही युवक ने अपना परिचय देना समाप्त किया , वैसे ही गांधी जी बोले फिलहाल आश्रम के लिए भोजन बनाने की व्यवस्था करनी है , इसके लिए तुम चावल बिनने में मेरी सहायता करोगे ?
युवक ने अनमने ढंग से गांधी जी के साथ चावल बिनने के कार्य में हाथ बटाया।
उसे यह कार्य करते हुए तनिक भी अच्छा नहीं लग रहा था।
उसने कल्पना की थी गांधीजी उसकी योग्यता के अनुसार उसे कार्य बताएंगे , किंतु हुआ विपरीत। संध्या का समय था वहां रह रहे लोग आश्रम की सफाई व्यवस्था में लगे हुए थे , ऐसा देखकर उस नवयुवकों तनिक भी अच्छा नहीं लग रहा था।
वह नवयुवक उठा और महात्मा जी से आज्ञा लेना चाहा।
अच्छा महात्मा जी अब आज्ञा दीजिए रात्रि का खाना मैं थोड़ा जल्दी खाता हूं , इसलिए हम मुझे घर जाने की आज्ञा दीजिए। महात्मा ने उस नवयुवक के कंधे पर स्नेह भरा हाथ रखा और कहा आप में देश सेवा की भावना है। यह बहुत ही अच्छी बात है सराहनीय है। किंतु देश सेवा की भावना स्वच्छ मन और निर्मल मन से होना चाहिए। इसमें अपने आप को श्रेष्ठ ना समझ कर सबको समान मानते हुए देश हित में कार्य करना चाहिए।
मैं जो कहना चाहता हूं वह आप समझ रहे होंगे।
वह नवयुवक गांधी जी के बातों को भलीभांति समझ रहा था उसने गांधी जी से हाथ जोड़कर क्षमा मांगा और कहा मैं आपकी बातों को भलीभांति समझ रहा हूं। मुझे क्षमा करिए मैं आगे से स्वयं को श्रेष्ठ और अन्य को नीचा नहीं समझूंगा और सच्चे मन से देश सेवा करूंगा।
महात्मा जी ने उस नवयुवक को सराहाते हुए गले लगा लिया इससे उस नवयुवक की आंखें भर आई।
4.बलि प्रथा का विरोध
चंपारण के दौरे पर जब गांधीजी पहुंचे उन्होंने देखा एक जुलूस देवी स्थान की ओर जा रही है। वह भीड़ ढोल-नगाड़ा बजाकर नाचते-गाते जा रही था। भीड़ से बकरे की करुण आवाज जोर-जोर से आ रही थी
गांधी जी को आश्चर्य हुआ यह भीड़ के बीच से बकरे की आवाज कैसे आ रही है ?
स्वयंसेवकों से पूछताछ की तो मालूम हुआ बकरे को बलि के लिए देवी स्थान ले जाया जा रहा है। इस बकरे की बलि से देवी को प्रसन्न किया जाता है।
किसी भी प्रकार के दुष्कर कार्य की पूर्ति के लिए बकरे की बलि शुभ मानी जाती है।
गांधीजी को बड़ा ही आश्चर्य हुआ। इस प्रकार की बातों को उन्होंने सुना तो था , आज देख भी लिया।
तत्काल वह देवी स्थान पहुंच गए , बकरे की गले में बंधी रस्सी को पकड़ लिया।
लोग गांधी जी को जानते थे और उनका बड़ा आदर करते थे।
सभी को आश्चर्य हुआ गांधी जी ने आखिर ऐसा क्यों किया। पूछने पर गांधी जी ने कहा बकरे की बलि देने पर अगर देवी प्रसन्न होती है , तो मनुष्य की बलि देने पर और प्रसन्न होंगी। मनुष्य की बलि देने पर सभी मनोवांछित कार्य पूरे होंगे।
इसलिए बकरे के स्थान पर मेरी बलि दी जाए , लोगों को आश्चर्य हुआ।
गांधी जी ने इस प्रकार के अंधविश्वास और बलि के रूप में जीव हत्या को विस्तार से लोगों को समझाया।
वहां के लोगों ने गांधी जी से हाथ जोड़कर माफी मांगी और जीव हत्या ना करने की कसम भी खाई।
तब से कुछ अपवाद के अतिरिक्त वहां जीव हत्या जैसा कोई समाचार सुनने को नहीं मिला।
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