बेहतरीन लेख : हर पिता यह याद रखे
यह लेख पढ़कर मैं बहुत ही ज्यादा प्रभावित हुआ , तो मैं सोचा इस लेख को आप सभी के साथ साझा करना चाहिए |यह लेख,अपने बेटे को बुरी तरह डांटने के बाद गहरी आत्मग्लानि से भरे हुए डबल्यू लिविंगस्टन लारनेड का यह पत्र हर पिता को जरूर पढ़ना चाहिए | ये लेख पहलीबार इंग्लिश भाषा में अमेरिकी पत्रकारिता पीपुल्स होम जर्नल में father forgets के नाम से प्रकाशित हुआ था | जिसके बाद इस लेख को कई और भाषा में भी प्रकाशित किया जा चूका है | आज मैं इस लेख को लेखक डब्ल्यू. लिविंग्स्टन लारनेड के ही भाषा में आपके सामने रख रहा हूँ |
“सुनो बेटे! मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ। तुम गहरी नींद में सो रहे हो। तुम्हारा नन्हा सा हाथ तुम्हारे नाज़ुक गाल के नीचे दबा है। और तुम्हारे पसीना-पसीना ललाट पर घुँघराले बाल बिखरे हुए हैं। मैं तुम्हारे कमरे में चुपके से दाख़िल हुआ हूँ, अकेला। अभी कुछ मिनट पहले जब मैं लायब्रेरी में अख़बार पढ़ रहा था, तो मुझे बहुत पश्चाताप हुआ। इसीलिए तो आधी रात को मैं तुम्हारे पास खड़ा हूँ, किसी अपराधी की तरह। जिन बातों के बारे में मैं सोच रहा था, वे ये हैं, बेटे। मैं आज तुम पर बहुत नाराज़ हुआ। जब तुम स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे थे, तब मैंने तुम्हें ख़ूब डाँटा… तुमने टॉवेल के बजाय पर्दे से हाथ पोंछ लिए थे। तुम्हारे जूते गंदे थे, इस बात पर भी मैंने तुम्हें कोसा। तुमने फ़र्श पर इधर-उधर चीज़ें फेंक रखी थीं… इस पर मैंने तुम्हें भला-बुरा कहा।”
“नाश्ता करते वक़्त भी मैं तुम्हारी एक के बाद एक ग़लतियाँ निकालता रहा। तुमने डाइनिंग टेबल पर खाना बिखरा दिया था। खाते समय तुम्हारे मुँह से चपड़-चपड़ की आवाज़ आ रही थी। मेज़ पर तुमने कोहनियाँ भी टिका रखी थीं। तुमने ब्रेड पर बहुत सारा मक्खन भी चुपड़ लिया था। यही नहीं जब मैं ऑफ़िस जा रहा था और तुम खेलने जा रहे थे और तुमने मुड़कर हाथ हिलाकर “बाय-बाय, डैडी” कहा था, तब भी मैंने भृकुटी तानकर टोका था, “अपनी कॉलर ठीक करो।”
शाम को भी मैंने यही सब किया। ऑफ़िस से लौटकर मैंने देखा कि तुम दोस्तों के साथ मिट्टी में खेल रहे थे। तुम्हारे कपड़े गंदे थे, तुम्हारे मोज़ों में छेद हो गए थे। मैं तुम्हें पकड़कर ले गया और तुम्हारे दोस्तों के सामने तुम्हें अपमानित किया। मोज़े महँगे हैं- जब तुम्हें ख़रीदने पड़ेंगे तब तुम्हें इनकी क़ीमत समझ में आएगी। ज़रा सोचो तो सही, एक पिता अपने बेटे का इससे ज़्यादा दिल किस तरह दुखा सकता है?
क्या तुम्हें याद है जब मैं लाइब्रेरी में पढ़ रहा था तब तुम रात को मेरे कमरे में आए थे, किसी सहमे हुए मृगछौने की तरह। तुम्हारी आँखें बता रही थीं कि तुम्हें कितनी चोट पहुँची है। और मैंने अख़बार के ऊपर से देखते हुए पढ़ने में बाधा डालने के लिए तुम्हें झिड़क दिया था, “कभी तो चैन से रहने दिया करो। अब क्या बात है?” और तुम दरवाज़े पर ही ठिठक गए थे। तुमने कुछ नहीं कहा था, बस भागकर मेरे गले में अपनी बाँहें डालकर मुझे चूमा था और “गुडनाइट” कहकर चले गए थे। तुम्हारी नन्ही बाँहों की जकड़न बता रही थी कि तुम्हारे दिल में ईश्वर ने प्रेम का ऐसा फूल खिलाया है जो इतनी उपेक्षा के बाद भी नहीं मुरझाया। और फिर तुम सीढ़ियों पर खट-खट करके चढ़ गए।
तो बेटे, इस घटना के कुछ ही देर बाद मेरे हाथों से अख़बार छूट गया और मुझे बहुत ग्लानि हुई। यह क्या होता जा रहा है मुझे? ग़लतियाँ ढूँढ़ने की, डाँटने-डपटने की आदत सी पड़ती जा रही है मुझे। अपने बच्चे के बचपने का मैं यह पुरस्कार दे रहा हूँ। ऐसा नहीं है, बेटे, कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता, पर मैं एक बच्चे से ज़रूरत से ज़्यादा उम्मीदें लगा बैठा था। मैं तुम्हारे व्यवहार को अपनी उम्र के तराज़ू पर तौल रहा था। तुम इतने प्यारे हो, इतने अच्छे और सच्चे। तुम्हारा नन्हा सा दिल इतना बड़ा है जैसे चौड़ी पहाड़ियों के पीछे से उगती सुबह। तुम्हारा बड़प्पन इसी बात से नज़र आता है कि दिन भर डाँटते रहने वाले पापा को भी तुम रात को “गुडनाइट किस” देने आए।
आज की रात और कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है, बेटे। मैं अँधेरे में तुम्हारे सिरहाने आया हूँ और मैं यहाँ पर घुटने टिकाए बैठा हूँ, शर्मिंदा। यह एक कमज़ोर पश्चाताप है। मैं जानता हूँ कि अगर मैं तुम्हें जगाकर यह सब कहूँगा, तो शायद तुम नहीं समझ पाओगे। पर कल से मैं सचमुच तुम्हारा प्यारा पापा बनकर दिखाऊँगा। मैं तुम्हारे साथ खेलूँगा, तुम्हारी मज़ेदार बातें मन लगाकर सुनूँगा, तुम्हारे साथ खुलकर हँसूँगा और तुम्हारी तकलीफ़ों को बाँटूँगा। आगे से जब भी मैं तुम्हें डाँटने के लिए मुँह खोलूँगा, तो इसके पहले अपनी जीभ को अपने दाँतों में दबा लूँगा। मैं बार-बार किसी मंत्र की तरह यह कहना सीखूँगा, “वह तो अभी बच्चा है… छोटा सा बच्चा!” मुझे अफ़सोस है कि मैंने तुम्हें बच्चा नहीं, बड़ा मान लिया था। परंतु आज जब मैं तुम्हें गुड़ी-मुड़ी और थका-थका पलंग पर सोया देख रहा हूँ, बेटे, तो मुझे एहसास होता है कि तुम अभी बच्चे ही तो हो। कल तक तुम अपनी माँ की बाँहों में थे, उसके कांधे पर सिर रखे। मैंने तुमसे कितनी ज़्यादा उम्मीदें की थीं, कितनी ज़्यादा!
लोगों की आलोचना करने के बजाय हमें उन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए। हमें यह पता लगाना चाहिए कि जो काम वे करते हैं, उन्हें वे क्यों करते हैं। यह आलोचना करने से बहुत ज़्यादा रोचक और लाभदायक होगा। यही नहीं, इससे सहानुभूति, सहनशक्ति और दयालुता का माहौल भी बनेगा। “सबको समझ लेने का मतलब है सबको माफ़ कर देना।” डॉ. जॉनसन ने कहा था, “भगवान ख़ुद इंसान की मौत से पहले उसका फ़ैसला नहीं करता।” फिर आप और मैं ऐसा करने वाले कौन होते हैं?
डब्ल्यू. लिविंग्स्टन लारनेड
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जय हिन्द
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