गुरुनानक देव के जीवन से जुड़ी पाँच प्रेरक प्रसंग

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गुरुनानक देव

आज गुरुनानक देव की जयंती पर गुरुनानक देव को याद करते हुए | मैंने बचपना में स्कूल में पढ़े उनके उस प्रेरक प्रसंग को आपके साथ साझा करना चाहता हूँ | मैं गुरुनानक देव के विचारों से बहुत ही ज्यादा प्रभावित हूँ , मुझे उनके द्वारा बताई गयी कहानी पढ़ने में बहुत ही ज्यादा आनंद का अनुभव होता है | उस आनंद को मैं आपके साथ साझा कर रहा हूँ  और प्रकाश पर्व की बहुत बहुत सुभकामनाएँ देता हूँ |

                             कामरूप देश की जादूगर रानी

एक बार गुरु नानक देव अपने दोनों चेलों के साथ कामरूप देश गए. वहां के लोग अपने काले जादू के लिए प्रसिद्ध थे. नगर के द्वार पर पहुँचते ही, गुरु नानक एक पेड़ की

छाँव में ध्यान मुद्रा में बैठ गए. उनका चेला मरदाना गाँव के भीतर भोजन और जल का प्रबंध करने गया. दूसरा चेला बाला वहीँ गुरु के पास रुका. एक जलाशय पर मरदाना

अपनी पानी की सुराही भरने लगा तो, वहां उस नगर की रानी की दो बहने आ पहुंची.

उसने मरदाना से वहां आने का कारण पूछा. मरदाना के उत्तर देते ही वह दोनों हँस पड़ी. वह बोलीं की तुम तो भेड़ बकरी की तरह बोलते हो. चलो तुम्हे भेड़-बकरी जैसा बना दें. इतना बोल कर उन में से एक लड़की नें मरदाना को भेड़ बना दिया और वह भे… भें… करने लगा. समय अधिक हुआ तो गुरु नानक और बाला को चिंता हुई. वह दोनों ठीक उसी जगह आ पहुंचे. इस बार उन दोनों लड़कियों नें बारी-बारी मंत्र बोल कर वही टोटका गुरु नानक पर आज़माया. लेकिन उनमें से खुद एक लड़की बकरी बन गई और दूसरी लड़की का हाथ हवा में जम कर शिथिल हो गया.

वहां मौजूद लोगों नें नगर की रानी को यह सूचना दी. वह फ़ौरन मौके पर आ पहुंची. उसने भी पहले तो गुरु नानक पर अपना काला जादू आज़माया. कुछ ही देर में

असफ़लता मिलने पर वह जान गई की उस का पाला किसी दैवीय शक्ति वाले संत से पड़ा है.

माफ़ी मांग लेने पर दयालु गुरु नानक देव नें उन दोनों लड़कियों को ठीक कर दिया. तथा मरदाना को भी उसके असली रूप में ला दिया.

इस प्रसंग के बाद कामरूप के लोगों नें गुरु नानक देव से ज्ञान देने को कहा.

तब गुरु नानक बोले-

हमारे अंदर इश्वर का वास होता है. आप सब को, लोगों को परेशान करना छोड़ कर उनकी मदद करनी चाहिए. ध्यान करो, कर्तव्य पालन करो. लोगों से प्रेम करो. गुरु नानक यह उपदेश दे कर वहां से आगे बढे.

उसके बाद कामरूप देश एक प्रसिद्द आध्यात्म केंद्र बना.

गुरु का आदेश

                          गुरु नानक देव की मक्का यात्रा

एक बार गुरु नानक के मुसलमान चेले मरदाना नें कहा कि वह मक्का मदीना जाना चाहता है. उसका यह मानना था की एक मुसलमान जब तक मक्का नहीं जाता है तब तक सच्चा मुसलमान नहीं कहलाता है. कुछ ही दिनों में गुरु नानक, मरदाना और बाला तीनों मक्का की यात्रा पर निकले. वहां पहुँच जाने पर गुरु नानक काफ़ी थक गए. वह मुसाफिरों के लिए बनी आरामगाह पर जा कर आराम करने लगे.

गुरु नानक को देख कर उस जगह काम करने वाला एक ख़ादिम आग बबूला हो गया. उसने गुरु नानक से गुस्से में कहा- “आपको इतनी समझ नहीं कि खुदा  की ओर पाँव रख कर नहीं सोते?

तब गुरु नानक बोले-

मुझे विश्राम करने दो भाई, मै बहुत थका हुआ हूँ. या फ़िर तुम खुद ही मेरे पाँव उस दिशा में कर दो जिधर खुदा न हों!

तब खादिम को एहसास हुआ कि खुदा तो हर तरफ है और उसने गुरु नानक देव से माफ़ी मांग ली.

गुरु नानक नें भी उसे माफ़ कर दिया और मुस्कुराते हुए कहा- “खुदा दिशाओं में वास नहीं करते, वह तो दिलों में राज करते हैं. अच्छे कर्म करो, खुदा को दिल में रखो, यही खुदा का सच्चा सदका है.”

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                                  गुरु नानक और नाग

एक समय गुरुनानक देव अपनी गाय को चराने के लिए जंगल की ओर ले कर गए. पास में एक सूखा पेड़ का तना देख कर उसके नीचे वह बिछोना लगा कर विश्राम करने लगे.

दिन का समय था इसलिए धूप बहुत तेज़ थी. पेड़ की सूखी शाखाओं के बीच से कड़ी धूप गुरु नानक के चेहरे पर पड़ रही थी. तभी अचानक वहां पर एक बड़े फन वाला काला नाग आ पहुंचा. और गुरु नानक के पास कुंडली मार के बैठ गया.

थोड़ी देर में वहां से राय भुल्लर नाम का एक व्यक्ति अपने घोड़े पर निकला. उसने देखा की एक व्यक्ति सो रहा है और ज़हरीला नाग उसे दंश देने की फ़िराक में है. यह सब देख कर वह बड़ी तेज़ी से गुरु नानक की और बढे. लेकिन जब वह करीब आये तो नज़ारा देख कर स्तब्ध हो गए.

वह काला नाग गुरु नानक को दंश देने नहीं आया था, वह अपना फन फैला कर गुरु नानक के चेहरे पर पड़ने वाली तीक्ष्ण धूप को रोक रहा था. इस दिव्य प्रसंग से प्रभावित

हुए राय भुल्लर आने वाले समय में, गुरु नानक के शिष्यों में शामिल हुए.

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बालक नानक का यज्ञोपवीत

कल्याणराय नें एक बार अपने पुत्र नानक का यज्ञोपवीत कराने हेतु, कुटुंब और परिचितों को आमंत्रित किया. बालक नानक आसन पर बैठे, मंत्रोच्चार शुरू हुआ. तब नानक नें पुरोहित से इस विधि का प्रयोजन पूछा.

तब पुरोहित नें कहा, तुम्हारा यज्ञोपवीत संस्कार हो रहा है, हिन्दू धर्म मर्यादा अनुसार “पवित्र सूत” को धारण करना कल्याणकारी होता है. इससे तुम्हे धर्म में दीक्षित कराया

जा रहा है.

कौतुहल वश नानक बोले, यह तो सूत का धागा है, गंदा हो जायेगा ना? और टूट भी सकता है? इस प्रश्न के जवाब में पुरोहित जी नें समझाया की, मैला होने पर इसे साफ़ कर सकते हैं. और खंडित हो जाने पर इसे बदला भी जा सकता है.

अब नानक बोले, देहांत के बाद, यह शरीर के साथ जल भी जाता होगा ना? यदि इसे धारण कर लेने से शरीर, आत्मा, मन तथा यज्ञोपवीत में अखंड पवित्रता नहीं रहती तो इसे धारण करने से क्या लाभ?

नानक नें कहा अगर यज्ञोपवीत धारण कराना है तो, अखंडित और अविनाशी यज्ञोपवीत पहनाओ जिस में दया का कपास हो और संतोष का सूत हो. ऐसा यज्ञोपवीत ही सच्चा

यज्ञोपवीत है.

हे आदरणीय पुरोहित जी, क्या आप के पास ऐसा सच्चा यज्ञोपवीत है? बाल नानक के इस सटीक तर्क की काट वहां मौजूद किसी व्यक्ति के पास न थी.

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गुरु नानक देव का सच्चा सौदा

एक समय की बात है, गुरु नानक जी के पिता नें उन्हें 20 रुपये दिए और मुनाफ़े का सौदा कर लाने को कहा.

पिता की आज्ञा अनुसार नानक सौदा लाने निकले. रस्ते में चलते-चलते उनकी भेंट एक साधू के समूह से हुई. वह सब बहुत भूखे थे. उन्हें विश्राम की भी ज़रूरत थी. तब गुरु नानक नें सौदा लेने की रकम उन भूखे साधुओं का पेट भरने में खर्च कर दी और उसके बाद गुरु नानक नें यथा संभव उनकी सेवा भी की. युवा नानक के इस दयालू आचरण से साधू गण अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने गुरु नानक को आशीर्वाद दिया.

घर लौटने पर पिता नें सौदे के बारे में पूछा. तब गुरु नानक बोले-

मैं सच्चा सौदा कर के आया हूँ. ज़रूरतमंद की मदद करना ही सच्चा सौदा है.

गुरु नानक की इस मानवतावादी विचारधारा से उनके पिता बहुत खुश हुए और उन्होंने पुत्र नानक को गले से लगा लिया.

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गुरु नानक देव और कोढ़ी

एक बार गुरु नानक देव जी अपने शिष्यों के साथ जगत का उद्धार करते हुए एक गाँव पहुँचे.

वहां गाँव के बाहर सबसे अलग-थलग एक झोपडी बनी थी जिसमे कुष्ठ रोग से ग्रसित एक आदमी रहता था.

नानक देव जी उस कोढ़ी के पास गये और रात भर इस झोपड़ी में ठहरने की अनुमति मांगी…

कोढ़ी को आश्चर्य हुआ कि एक तरफ जहाँ उसे पूरे गाँव वालों यहाँ तक की उसके घर वालों ने भी अलग कर दिया है और कोई उससे बात नहीं करता वहीँ ये लोग उसके घर में रात भर रहना चाहते हैं…. वह कुछ बोल न सका और सिर्फ नानक देव जी को ओर देखता रहा.

कुछ देर में मरदाना और बाला ने भजन-कीर्तन  शुरू कर दिया. कोढ़ी बड़े ध्यान से कीर्तन सुनने लगा.

कुछ देर बाद गुरु नानक ने उससे पूछा, “ भाई तुम यहाँ गाँव के बाहर इस झोपड़ी में अकेले क्यों रहते हो?”

तब कोढ़ी ने दुखी मन से बताया कि उसे कोढ़ है जिस कारण उसके घर वालों ने भी उससे सम्बन्ध ख़त्म कर लिए और पूरे गाँव में कोई परछाई तक करीब नहीं आने देता.

तब नानक ने कहा, “ जरा मुझे भी तो अपना रोग दिखाओ?”

फिर जैसे ही वह कोढ़ी नानक जी को अपना रोग दिखाने को उठा … एक महान चमत्कार हुआ… उसके हाथ-पाँव की उँगलियाँ सीधी हो गयीं….सभी अंग ठीक प्रकार से काम करने लगे…. उसका कुष्ट रोग हमेशा के लिए ख़त्म हो गया.

वह गुरुनानक देव जी के चरणों में लिपट पड़ा.

नानक जी ने उसे उठाया और गले लगा कर कहा – प्रभु का स्मरण करो और लोगों की सेवा करो; यही मनुष्य के जीवन का मुख्य कार्य है !

सफल जीवन’ क्या होता है

आशा करता हूँ ये पोस्ट आपको प्रेरित किया होगा है यदि आपके पास भी गुरुनानक देव से जुडी यादें है तो कमेंट के माधयम से या मेल से साझा कर सकते है | पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद
जय हिन्द

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