महाराज विक्रमादित्य का अनोखा न्याय
ये कहानी (अनोखा न्याय) है भारत के बेहतरीन प्रशासक में से एक महाराजा विक्रमादित्य के राज्य काल का , एक बार की बात है एक गांव में कुछ बच्चे खेल रहे थे | वो खेलते -खेलते थक जाने के बाद घर की तरफ जा रहे थे | और रास्ते में एक पुराण जामुन का पेड़ मिलता था , जिसमें मीठे-मीठे फल लग रहे थे | ये फल बच्चों को अपनी तरफ खीच रहा था | और बच्चों के अंदर इस फल को पाने का इच्छा जागने लगा | इसके बाद ये बच्चे पास पड़े पत्थर उठाते है और पेड़ पर फेंकना शुरू करते है |
सभी बच्चे पेड़ पर लगातार पत्थर फेक रहा था | बच्चे अपने कार्य में इतना मग्न हो चुके थे की आस-पास किया हो रहा है , उनको कुछ भी पता नहीं चल रहा था | पास थोड़ी दूर से ही राज विक्रमदित्य अपने सैनिक के साथ अपने राज्य भ्रमण करके आ रहे थे , तभी अचानक कुछ पत्थर महराज विक्रादित्य को आके लगती है और काफिले में भगदड़ मच जाता है |
लेकिन बच्चे अभी भी जामुन तोड़ने में मशगूल थे | तभी कुछ सैनिक आ धमकते है और उन सभी बच्चों को पकड़ लेते है | पुरे गांव में बहुत ही डर का माहौल बन गया था | ग्रामीण डरे हुए थे की बच्चों के साथ पता नहीं क्या होगा ?
अगली सुबह महाराजा विक्रमादित्य का राज्य दरबार लगता है और बीते कल की घटना पर सुनवाई शुरू होता है | उन बच्चों को दरबार में पेश किया जाता है | उसके बाद मंत्री उन बच्चों को महाराज पर पत्थर फेंकने के जुर्म में सजा की माँग करता है | जिसके बाद बारी- बारी से सभी दरबारी मंत्री की बात को समर्थन करते हुए सजा की माँग करता है |
महाराज विक्रादित्य सभी को सुनने के बाद सहमे बच्चों की तरफ देखते है और उन बच्चों से प्रेम से पूछते है ” तुमलोग क्या कर रहे थे ? “
बालक : महाराज हमलोग को माफ़ करें, हमशे भूल हो गया |
विक्रमादित्य : डरो मत, तुम-लोग साफ साफ बोलो तुमलोग क्या करे थे ?
बालक : महाराज हमलोग जामुन तोड़ने के लिए पेड़ पर पत्थर फेक रहे थे | लेकिन ये गलती से आपको लग गयी , हमलोग को क्षमा करें महाराज |
विक्रमदित्य (थोड़ा सोचने के बाद ) : अपने मंत्री को कहते है इस बच्चों को छोड़ दिया जाय और साथ में कुछ स्वर्ण मुद्रायें भी दिया जाय |
मंत्री के साथ दरबारी और बच्चे चौंक जाते है | उनको अपने कानो पर विश्वास नहीं होता है |
मंत्री : महाराज गुस्ताखी माफ़ हो, लेकिन क्या हम इस फैसले का कारन जान सकता हूँ ?
विक्रमादित्य (मुस्कुराते हुए ) : ये बच्चे जिस पेड़ पर पत्थर फेक रहे थे, वो पेड़ बदले में मिठे-मिठे जामुन दे रहा था | हम मानव कितने निष्ठुर है जो इस बच्चे को सजा देने की बात कर रहे है | हम कैसे राजा है जो एक पेड़ इतना भी न्याय नहीं कर सकते है |
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निष्कर्ष :
महाराज विक्रमादित्य का राज्य न्याय के ऐसे -ऐसे उदहारण पेश किये थे , जो हज़ारों साल से इस दुनियाँ को न्याय का एक रास्ता दिखते रहा है | महाराज विक्रमदित्य के राज्य दरबार को स्वर्णिम काल कहा जाता था , जंहा किसी के भी घर में ताला नहीं लगता था | जब न्याय की बात आता है महराज विक्रमदित्य का नाम सबसे ऊपर आता है |
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जय हिन्द
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