भगवान बुद्ध की 3 सबसे प्रेरक कहानी
सन्यासी कौन है
एक बार की बात है, भगवान बुद्ध ने अपने शिष्य के शिक्षा पूरा होने पर वे परीक्षा लेने का निर्णय करते है | उन्होंने अपने सभी शिष्य को बुलाते है और उनको पूछते है | आज आपलोग का शिक्षा पूरा हुआ आज से आपलोग सन्यासी हुए | अब आपलोग दूसरे सन्यासी के तरह भिक्षा माँगने जा सकते है |
फिर भगवान बुद्ध कहते है लेकिन मैं एक बात बताना चाहता हूँ कि भिक्षा माँगना इतना भी आसान काम नहीं है |
फिर बुद्ध ने कहा “ रास्ते में कुछ ऐसे लोग भी मिलेंगे , जो आपको भिक्षा देने से मना कर देंगे फिर आप क्या किजये गा “
शिष्य : प्रभु हम उसको माफ कर देंगे की ये भला मानव है , जिसने सिर्फ इंकार किया , भला -बुरा तो नहीं कहा ना |
बुद्ध : लेकिन कुछ लोग ऐसे भी मिलेंगे जो आपको भला -बुरा भी कहेंगें
शिष्य : प्रभु हम उसको भी माफ कर देंगे कि बेचारा भला मानव है जिन्होंने सिर्फ भला -बुरा कहा , लाठी -डंडा से नहीं पीटा ना |
बुद्ध : लेकिन रस्ते में कुछ ऐसे लोग भी मिलेंगे जो लाठी -डंडा से भी पीट सकते है
शिष्य : प्रभु हम उसको भी माफ कर दूंगा की बेचार भला मानव है जिसने सिर्फ लाठी -डंडा से मारा , जान से तो नहीं मारा ना
भगवन बुद्ध इतना सुनते ही अपने शिष्य को गाला लगा लिए | और यही सिर्फ आगे चलकर बुद्ध के सबसे बड़ा शिष्य आनंद के नाम से प्रशिद्ध हुआ |
और भगवान बुद्ध कहते है ” सन्यासी का स्वभाव ऐसा ही होना चाहिए, सन्यासी को किसी भी परिस्तिथि में किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए “
किसी को भला -बुरा नहीं कहना चाहिए
एक बार कि बात है भगवान बुद्ध जंगल के एक शिला पर बैठकर तपस्या कर रहे थे , भगवान बुद्ध तपस्या में लीन थे | वहीँ थोड़ी दूर पर एक चरवाहा अपना गाय को चराने के लिए आया था | थोड़ा देर बितने के बाद चरवाहा को भूख और प्यास का आभास हुआ , चरवाहा थोड़ी दूर में बैठे बुद्ध को देखकर सोचता है | अरे महात्मा जी यहीं पर है ही उनको कहकर चला जाता हूँ ,कैसे भी वो भी बैठे ही है थोड़ा देर में वापस आ जाऊँगा | चरवाहा उठता है और बुद्ध के पास जाकर कहता है ” महात्मा जी मुझे थोड़ा भूख लग रहा है , मैं पास के गांव से ही खाना खा के थोड़ी देर में आ जाता हूँ तब तक मेरी गैया का देख रेख कीजिए गा ” इतना बोल कर चरवाहा चला गया , बुद्ध उसका आवाज़ सुने भी नहीं क्यूँकि वो अपने ध्यान में थे |
कुछ देर बाद चरवाहा घर से खाना खा के आता है , उसको अपनी गैया कंही भी नहीं दिखता है लेकिन भगवान बुद्ध वहीँ बैठे मिलते है | वो बुद्ध के पास जा कर पूछता है ” महात्मा जी मेरी गैया कहाँ है ” बुद्ध कुछ भी नहीं बोलते है | चरवाहा को गुस्सा आता है , अरे मैं पूछ रहा हूँ ये कुछ बोल नहीं रहा है |
चरवाहा भला -बुरा कहना शुरू कर देता है | लेकिन बुद्ध फिर भी कुछ नहीं बोलते है | चरवाहा को अब और भी ज़्यदा गुस्सा आता है , चरवाहा बोलता है मैं यहाँ इतनी देर से गाला फाड़ रहा हूँ , इसको कुछ फर्क ही नहीं पड़ता है |
चरवाहा एक नुकीली लकड़ी लेके बुद्ध के कान में डालता है, जिससे कान छील जाता है और उससे रक्त बहार निकलने लगता है | तब बुद्ध अपना आँख खोलते है | बुद्ध के आँख खोलने के बाद चरवाहा और भी गुस्सा में गली -गलौज करने लगा | लेकिन उसके बाद भी बुद्ध ने कुछ नहीं बोले | तब चरवाहा ये देख कर थोड़ा शांत हुआ |
तब भगवान बुद्ध उस चरवाहे को कहते है ” कभी कोई अतिथि तुम्हारे घर में आया है “
चरवाहा ” हाँ आया है “
बुद्ध – तुमने उसको भोजन के लिए पूछा होगा
चरवाहा – हाँ पूछा
बुद्ध : यदि अतिथि भोजन अस्वीकार कर दे तो तुम क्या करते हो
चरवाहा : हम भोजन अपने पास रख लेते है
बुद्ध तो अभी तुमने हमें जो गली दी वो मैं स्वीकार नहीं करता हूँ, अब वो तुम्हारे पास ही है |
चरवाहा अपने किये पर बहुत ही ज्यादा शर्मिंदा हुआ | और वो बुद्ध से माफ़ी माँग कर अपने काम पर लौट गया |
सबसे बड़ा दान
एक बार भगवान बुद्ध एक गांव में एक वृक्ष के निचे बैठे हुए थे और गांव के लोग उनके पास जा कर बुद्ध से आशीर्वाद ले रहे थे और उनको उपहार भेंट कर रहे थे थे | गांव के एक से बढ़कर एक संपन्न लोग वँहा पहुंचे हुए थे | तभी वँहा एक वृद्ध पहुँचता है और अपनी लड़-खड़ाती आवाज़ में बोला ” भगवन, मैं बहुत गरीब हूँ | मेरे पास आपको भेंट देने के लिए कुछ भी नहीं है | हाँ आज एक आम मिला था जिसे मैं आधा खा चूका था तभी पता चला की आप आज भेंट स्वीकार कर रहे है | अतः मैं भी आपको ये बच्चे हुए आधे आम भेंट करने आया हूँ | कृपा कर इसको स्वीकार करें
भगवान बुद्ध अंजुरी में उस आधे आम को प्रेम और श्रद्धा से रख लेते है मनो जैसे कोई बहुत बड़ा भेंट मिला हो | वह वृद्ध अपना भेंट देकर हँसी -ख़ुशी से वापस लौट जाता है | वँहा उपस्थित सम्पन्न लोग ये देखकर चकित रह गए | उन्हें समझ नहीं आया की ये जूठा आम को लेने के लिए बुद्ध अपने आसान से निचे तक आ कर स्वीकार किये ? उन्होंने पूछा ” भगवन इस वृद्ध और इसके भेंट में ऐसी क्या बात थी “
बुद्ध मुस्कुरा कर बोले ” इस वृद्ध ने अपनी सम्पूर्ण जमा पूंजी मुझे भेंट कर दी | जबकि आप में से प्रत्येक लोग अपने धन एक छोटा हिस्सा मुझे भेंट किया है | अहंकार के बग्घी पर चढ़कर आये हो | जबकि उस वृद्ध के मुख पर कितना करूणा और नम्रता था | ऐसा दान युगों -युगों में एक बार मिलता है |”
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