सिख के दसमेव गुरु गोबिंद सिंह का जीवन परिचय
सवा लाख से एक लड़ाऊँ,
चिड़याँ से मैं बाज तुड़ाऊँ
तब गुरु गोबिंद सिंह कहाऊं
ये शब्द नहीं गुरु गोबिंद सिंह जी क जीवन परिचय है | ये शब्द उन्होंने ऐसे ही जोश में नहीं कह दिए थे | ये शब्द उन्होंने तब कहा था जब गुरु गोबिंद सिंह का 40 सेना मुग़ल शाही के 10 लाख सेना पर भरी पड़ गया था | उन्होंने मुगल शाही के 10 लाख सेना के छक्के छुड़ा दिया था | गुरु गोबिंद सिंह जी बहुत बड़े मोटिवेशनल स्पीकर और लीडर थे | जो उन्होंने अंसभव सा लगने वाले टास्क को भी करने के लिए अपने सेना को मोटीवेट कर लिया | हमारे देश के महान सपूत गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना पूरा जीवन देश के नाम कर दिया और जीने का एक पद्धति बनाया जिसके साथ ही जीने के एक तरीके का स्थापन किया जिसे खालसा पंथ कहा जाता है |
इस पोस्ट में आप गुरु गोबिंद सिंह के जीवन से जुडी महत्वपूर्ण जानकारी और उनके बनाये रास्ते के बाड़े में विस्तार से पड़ेंगे | गुरु गोबिंद सिंह के जीवन को जानने के लिए आप ये पूरा पोस्ट जरूर पढ़े |
गुरु गोबिंद सिंह का प्राम्भिक जीवन– Early Life of Guru Gobind Singh in Hindi
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसम्बर 1666 को पटना बिहार में हुआ था | गुरु गोबिंद सिंह नौंवे सिख गुरु , गुरु तेगबहादुर के पुत्र थे और इनके माता का नाम गुजरी था | जिस समय गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ था , उस समय गुरु तेज बहादुर असम के यात्रा पर थे |
गुरु गोबिंद सिंह जी का बचपन का नाम गोबिंद राय था | वो लगभग 4 साल तक पटना में रहे वँहा उन्होंने बचपन में ही युद्ध पर आधारित खेल में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे और एक बहुत ही कुशल खिलाडी थे |
बाद में गोबिंद सिंह का परिवार पंजाब के चक्क नानक (वर्त्तमान आनंदपुर साहिब ) चले जाते है | जँहा उनका पूरा परिवार शिवालिका के पहाड़ी में रहता था | गोबिंद सिंह जी को शिक्षा , दीक्षा और शस्त्र और शास्त्र तथा अध्यात्म का प्राथमिक ज्ञान अपने पिता गुरु तेग बहादुर के संरक्षण में मिला
- चक्क नानक शहर जिसे वर्तमान में आनंदपुर साहिब के नाम से जाना जाता है इस शहर को गुरु तेग बहादुर ने स्थापित किया था |
- गुरु गोबिंद सिंह के जन्म स्थान का नाम “तख़्त श्री पटना हरिमंदर साहिब” के नाम से जाना जाता है। जँहा एक बहुत ही भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है | पटना के एक पुरे भू भाग का नाम इन्हीं के नाम पर पटना साहिब रखा गया है |
दिल्ली की गद्दी पर बैठा औरंगजेब का अत्याचार जब पुरे भारत पर डर का माहौल पैदा कर रहा था | तब कश्मीरी पण्डितों को भी ज़बरदस्ती इस्लाम धर्म स्वीकार करने पर मजबूर किया जा रहा था | तब कुछ कश्मीरी पंडित ने गुरु तेग बहादुर से मदद मांगने आनंदपुर आया और गुरु तेग बहादुर का हस्तक्षेप मांगा | तब गुरु तेगबहादुर जी ने इसका पुरजोर विरोध किया और हिन्दुओं की रक्षा की। उन्होंने खुद भी इस्लाम धर्म कबूल करने से इनकार कर दिया।
इसके बाद औरंगजेब के बढ़ते जुल्म को देखते हुए उन्होंने दिल्ली जाने का फैसला करते है | उन्हें इस बात का आभास था कि उनके साथ कुछ भी हो सकता है , इसलिए उन्होंने जाने से पहले अपने नौ साल के बेटे गोबिंद राय को सिखों का उत्तराधिकारी और दसवां गुरु नियुक्त किया |
इसके बाद दिल्ली में उन्होंने अपने आवाज को बुलंद किया | जिससे परेशान होकर औरंजेब के सेना गुरु तेग बहादुर को गिरफ्तार कर लेता है | उसके बाद उन्हें बहुत यातनाएं दी जाती है और मुस्लिम धर्म स्वीकार करने को कहा जाता है | लेकिन उन्होंने पुरे दरबार के सामने इस्लाम कबूल करने से इंकार कर दिया | इस कारण से उन्हे दुष्ट बादशाह औरंगज़ेब नें चांदनी चौक में उनका सिर कलम करवा दिया। गुरु तेग बहादुर के मृत्यु के तत्पश्चात गुरु गोबिंद सिंह जी को मात्र 9 वर्ष कि आयु में सिख के दशमेव गुरु बनाया जाता है |
गुरु गोबिंद सिंह का जीवन संघर्ष – Struggle of Guru Gobind Singh In Hindi
मात्र 9 वर्ष कि छोटी उम्र में सिख के दसमें गुरु बनने के बाद गुरु गोबिंद सिंह के सामने बहुत सारि मुश्किलें थी | लेकिन जो सबसे बड़ी मुश्किल था, वो था सिख समुदाय को संगठित रखना और गुरु तेग बहादुर कि मृत्यु से आहत लोगो को समझाना और लड़ने का जज्बा फिर से भड़ना | गुरु गोबिंद सिंह बहुत होशियार और साहसी बालक थे | वो खुद भी सिख रहे थे और अपने समूह को भी सीखा रहे थे |
गुरु गोबिंद सिंह ने परिस्तिथि को बहुत बारीकी से समझने का प्रयास किया और इसके बाद उन्होंने यमुना नदी के किनारे एक शिविर में रह कर मार्शल आर्ट्स, शिकार, साहित्य और भाषाएँ जैसे संस्कृत, फारसी, मुग़ल, पंजाबी, तथा ब्रज भाषा भी सीखीं। गुरु गोबिंद सिंह ने भाषा को सिखने पर बहुत मेहनत किया इसके पीछे का कारण था, अपने समूह का विस्तार और दुश्मनो का गुप्तचरी को आसानी से समझ सके |
गुरु गोबिंद सिंह ने धर्म ग्रंथ को पढ़ने में बहुत ही ज्यादा रूचि लेते थे | उन्होंने सिख समुदाय के पुरे धर्म-ग्रंथ और सिख गुरुओं के द्वारा दिए गए ज्ञान को बहुत ही ध्यान से अध्ययन किया | आप शयद नहीं जानते होंगे , गुरु गोबिंद सिंह एक बेहतरीन योद्धा के साथ कवी भी थे | उन्होंने कई कविता और किताब का भी रचना किये थे | सन 1684 में उन्होंने एक महाकाव्य कविता भी लिखा जिसका नाम है “वर श्री भगौती जी की” Var Sri Bhagauti Ji Ki/Chandi Di Var. यह काव्य हिन्दू माता भगवती/दुर्गा/चंडी और राक्षसों के बिच संघर्ष को दर्शाता है।
वे अपने अनुयाई और समूह को अक्सर मोटीवेट करने और जोश भरने के लिए प्रवचन दिया करते है | ये उनका अक्सर होने वाला कार्यकर्म था
खालसा पंथ का स्थापना – Foundation of Khalsa Panth In Hindi
गुरु गोबिंद सिंह को सन 1699 में खालसा पंथ कि शुरुआत का जरुरत मसहूस हुआ था | खालसा शब्द का अर्थ शुद्धता होता है, मन वचन और कर्म से समाजसेवा के लिए कटिबद्ध व्यक्ति ही खुद को खालसापंथी कह सकता है। खालसा पंथ के शुरुआत के पीछे एक बहुत ही बेहतरीन कहानी/सच्ची घटना है |
सिख समुदाय का सभा चल रहा था उन्होंने सभा में सबके सामने पुछा – कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है? उसी समय एक स्वयंसेवक इस बात के लिए राज़ी हो गया और गुरु गोबिंद सिंह उसे तम्बू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे एक खून लगे हुए तलवार के साथ।
गुरु ने दोबारा उस समुदाय के लोगों से वही सवाल पुछा और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राज़ी हुआ और उनके साथ गया पर वे तम्बू से जब बहार निकले तो खून से सना तलवार उनके हाथ में था।
उसी प्रकार उन्होंने तीन और स्वंयसेवक को यही सवाल पूछे, पांचवा स्वयंसेवक जब उनके साथ तम्बू के भीतर गया, कुछ देर बाद गुरु गोबिंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे और उन्होंने उन्हें पंज प्यारे Panj Pyare या पहले खालसा का नाम दिया।
उसके बाद गुरु गोबिंद जी ने एक लोहे का कटोरा लिया और उसमें पानी और चीनी मिला कर दुधारी तलवार से घोल कर अमृत का नाम दिया। पहले 5 खालसा के बनाने के बाद उन्हें छटवां खालसा का नाम दिया गया जिसके बाद उनका नाम गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह रख दिया गया।
तो ऐसे शुरुआत हुआ था खालसा और खालसा पंथ का , खालसा पंथ ऐसे लोगों का एक समूह था जो मौत से भी नहीं डरते थे , ये निडर और देश के लिए जान देने वाले लोगों का समूह था |
खालसा पंथ के सिद्धांत और वाणी– Principles and Holi word of Khalsa Panth in Hindi
सिद्धांत :
खालसा पंथ के स्थापना के समय गुरु गोबिंद सिंह ने इसके सिद्धांत बनाये थे | सिख धर्म मानाने वाले आज भी इस सिंद्धातं का पालन करते है | ये सिंद्धांत को गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा दिए गए ‘5 ककार’ या ‘5 कक्के’ कहते है | खालसा पंथ के पांच प्रतिक थे केश , कंघा , कड़ा , कच्छा और कृपाण है | इसे रखने के पीछे तर्क भी था
- केश : कभी अपने सिर के बाल नहीं काटना, क्यूँकि हमारे ऋषि-मुनि कभी बाल नहीं काटते थे |
- कंघा : लकड़ी का कंघा धारण करना जो स्वच्छता का प्रतीक माना जाता है।
- कड़ा : हाथ में कड़ा पहनना , धातु का कंगन पहना |
- कच्छा : सूती वस्त्र का घुटने तक आने वाला अंतर्वस्त्र (कच्छा ) अथवा बाहरी वस्त्र पजामा पहनना।
- कृपाण : एक प्रकार का छोटी तलवार रखना जो गरीब और मज़लूम वर्ग की रक्षा के लिए।
वाणी :
खालसा पंथ के सिद्धांत के साथ इसके पवित्र वाणी भी दिया गया था |
“वाहेगुरु जी दा खालसा वाहेगुरु जी दी फतेह”
ये सिख का सभी पवित्र वाणी है |
साथ ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा योद्धा के लिए कुछ और भी नियम तैयार किये जैसे –
- वे कभी भी तंबाकू नहीं उपयोग कर सकते।
- बलि दिया हुआ मांस नहीं खा सकते।
- किसी भी मुस्लिम के साथ किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं बना सकते।
- उन लोगों से कभी भी बात ना करें जो उनके उत्तराधिकारी के प्रतिद्वंद्वी हैं।
सिख के अंतिम गुरु
गुरु गोबिंद सिंह नें सभी सिख गुरुओं के उपदेशों का संकलन कर के गुरु ग्रंथ साहिब पुस्तक में संग्रहित कर के उसे पूरा किया। अपनी जीवन यात्रा के अंतिम पड़ाव पर गुरु गोबिंद सिंह नें संगत बुला कर सिख धार्मिक पुस्तक गुरु ग्रंथ साहिब को सिख गुरु की गद्दी पर स्थापित किया। और कहा की अब आगे कोई जीवित व्यक्ति इस गद्दी पर नहीं बिराजमान होगा। फिर उन्होने कहा कि-
आनेवाले समय में सिख समाज को गुरु ग्रंथ साहिब पुस्तक से ही मार्गदर्शन और प्रेरणा लेनी है।
इसके साथ साथ उन्होने सिख समाज को दीन-दुखियों की सहायता करने और सदैव मर्यादित आचरण करने की सीख दी। इस तरह गुरु गोबिंद सिंह सिख समाज के अंतिम जीवित गुरु बने।
गुरु गोबिंद सिंह का बलिदान– Sacrifice of Guru Gobind Singh in Hindi
गुरु गोबिंद सिंह का बलिदान पुरे भारतीय इतिहास में सबसे महत्पूर्ण बलिदान में से एक माना जाता है | उन्होंने सबसे पहले मात्र 9 वर्ष कि उम्र में अपने पिता गुरु तेग बहादुर का बलिदान दिया | इसके बाद गुरु गोबिंद सिंह कि सेना कई और युद्ध लड़े , जिसमें से भानगनी की लड़ाई, बदायूं की लड़ाई, गुलेर की लड़ाई, निर्मोहगढ़ की लड़ाई, बसोली की लड़ाई, आनंदपुर की लड़ाई और मुक्तसर की लड़ाई प्रमुख था |
गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने दो बड़े झुजार सिंह और अजित सिंह सहित कई बहादुर सिख सैनिकों ने लड़ाई में अपनी जान गंवा दी. उनके छोटे बेटों फतेह सिंह और जोरावर सिंह को मुगल सेनाओं ने पकड़ लिया और उन्हें इस्लाम में परिवर्तित होने के लिए मजबूर किया. युवा लड़कों ने इनकार कर दिया और जिसके बाद उनदोनों को जिन्दा दीवार के अंदर चुनवा दिया गया | गुरु गोबिंद सिंह ने अपने बेटों के दुखद हत्या के बावजूद बहादुरी से लड़ाई जारी रखी और जब तक औरंगजेब जिन्दा रहा मुगल और सिखों के बीच युद्ध जारी रखा |
गुरु गोबिंद सिंह का अंतिम क्षण
जब औरंगज़ेब मृत्यु को प्राप्त हुआ तब हिंदुस्तान के अगले बादशाह बहादुर शाह बने थे। उन्हे गद्दी दिलाने के लिए गुरु गोबिंद सिंह नें भी मदद की थी। उसी कारण हेतु उन दोनों के संबंध मित्रतापूर्ण थे। बहादुरशाह और गुरु गोबिंद सिंह के मैत्रीभाव से घबड़ा कर सरहद के नवाब वजीद खाँ नें दो पठान द्वारा गुरु गोबिंद सिंह की धोखे से हत्या करने के लिए भेजा गया था । गुरु गोबिंद सिंह के दोनों हत्यारों में से एक को गोबिंद सिंह नें खुद ही अपनी कटार से मौत के घाट उतार दिया था। और दूसरे को सिख समूह नें मार दिया था। दिल पर कटार का तेज वार से उन्हें बहुत गहरा घाव हुआ था । जिसके बाद कई वैद ने उनका इलाज किया लेकिन गुरु गोबिंद सिंह जी अपने मृत्यु को महसूस कर रहे थे और उन्होंने 7 अक्तूबर 1708 के दिन नांदेड़ साहिब, महाराष्ट्र में अंतिम श्वास ली | । गुरु गोबिंद सिंह का जीवनकाल मात्र 42 वर्ष का रहा।
Note :गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पौष महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। जिसे हर साल प्रकाश पर्व के रूप में पूरा भारत में मनाया जाता है | इस साल ये पर्व 20 जनवरी को मनाया जायेगा |
गुरु गोविंद सिंह के जी अनमोल वचन – Precious words of Guru Govind Singh’s in Hindi
- अपनी जीविका ईमानदारी पूर्वक काम करते हुए चलाएं।
- अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दान करें।
- अपनी जीविका ईमानदारी पूर्वक काम करते हुए चलाएं।
- काम में खूब मेहनत करें और काम को लेकर किसी तरह की आलस्यपन न करें।
- अपनी जवानी, जाति और कुल धर्म को लेकर घमंडी होने से बचें।
- दुश्मन का सामना करने से पहले साम, दाम, दंड और भेद का सहारा लें, और अंत में ही आमने-सामने के युद्ध में पड़ें।
- किसी की चुगली-निंदा से बचें और किसी से ईर्ष्या करने के बजाय मेहनत करें।
- हमेशा जरूरतमंद व्यक्तियों की मदद जरूर करें।
- खुद को सुरक्षित रखने के लिए नियमित व्यायाम और घुड़सवारी की अभ्यास जरूर करें।
- किसी भी तरह के नशे और तंबाकू का सेवन न करें।
निष्कर्ष :- Conclusion
गुरु गोबिंद सिंह जी का पूरा जीवन प्रकाश का स्रोत जिसे जितना पढ़ा जायेगा एक इंसान के रूप में हो या राष्ट्र के रूप में वो उतना ही ज्यादा मार्गदर्शन करता रहेगा | हमें अपने बच्चों को गुरु गोबिंद सिंह का जीवन यात्रा को जरूर पढ़ाना चाहिए | यदि आप गुरु गोबिंद सिंह के जीवन को और विस्तार से पढ़ना चाहते हैं तो आप निचे दिए गए किताब खरीद कर पढ़ सकते है |
आशा करता हूँ ये पोस्ट आपको अच्छा लगा होगा | यदि पोस्ट अच्छा लगा है तो अपने बच्चों को गुरु गोबिंद सिंह के जीवन के बाड़े में जरूर बताएं और इस पोस्ट को अपने social Media पर शेयर करें |
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जय हिन्द
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