हिंदी के प्रचार प्रसार में हिंदी सिनेमा का योगदान
वैसे तो किसी भाषा के विकास में अनेकों कारण और कारक होते हैं , किंतु बात की जाए हिंदी भाषा की तो यह मूल भाषा ना होकर प्राचीन भारतीय आर्य भाषा संस्कृत के कोख से निकलती हुई आज प्रश्न करती है कि हमारी प्रचार-प्रसार में हिंदी सिनेमा की क्या भूमिका रही |
तो इस प्रकार से हिंदी का कालक्रम संस्कृत से जोड़कर देखे तो इसके विकास और प्रचार-प्रसार का मुख्य श्रेय अखंड भारत के ऋषियों और कवियों को जाता है, जिसमें महर्षि मनु, बाल्मीकि, व्यास कालिदास, प्रेमचंद और शरतचंद्र को जाती हुई भारतीय सिनेमा में प्रवेश करती है ।
हां वही शरतचंद्र चट्टोपाध्याय जिसकी लेखनी ” देवदास ” पर लगभग डेढ़ सौ से अधिक हिंदी सिनेमा का जन्म होता है । सिनेमा हमें हिन्दी जनसंचार मनोरंजन का एक लोकप्रिय माध्यम दिया। वहीं दूसरी ओर प्रारम्भिक दौर में भारत की पौराणिक एवं ऐतिहासिक हिंदी फिल्मों, जो पौराणिक साक्ष्य के बल पर भारतीय एकता को मजबूत करने का काम किया । किन्तु समय बीतने के साथ-साथ सामाजिक, राजनीतिक एवं साहित्यिक हिंदी फिल्मों का भी बडी संख्या में निर्माण किया , जैसे :- छत्रपति शिवाजी, झाँसी की रानी, मुगले आजम, मदर इण्डिया आदि फिल्मों ने समाज पर अपना गहरा प्रभाव डाला । यही नहीं कुछ हिंदी फिल्मों ने भारतीय भावना को प्रेरित करने का काम किया जैसे कि 1965 में राजकुमार की बनी हिंदी फिल्म “वक्त” में , जिनके घर शीशे के होते हैं वह दूसरों के घर पत्थर नहीं फेंका करते । “हम सब इस रंगमंच की कठपुतलियां हैं इनकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है” राजकुमार की ये बातें भारतीय समरसता को एक नया आयाम देती है। वहीं फिल्म आनंद मैं राजेश खन्ना की कहीं यह बात ” बाबू मोशाय… जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लम्बी नही .. ” । इस तरह सिनेमा समाज को प्रतिबिंबित करता हुआ समाज के लिए साहित्य के समान दर्पण का काम किया ।
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा है कि राष्ट्रभाषा हिन्दी को लोकप्रिय बनाने में किसी अन्य माध्यम की तुलना में ” सिनेमा ” ने ज्यादा योगदान दिया |
हिंदी सिनेमा का योगदान
बॉलीवुड और हिंदी एक दूसरे के पर्याय है जब बॉलीवुड की बात होती है तो हमारे मन में एक ऐसी तस्वीर उभरती है जिसने सभी भाषा के क्षेत्रों व सीमाओं को तोड़ते हुए हिंदी को जन सुलभ और लोकप्रिय भाषा के पद पर आरूढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । भारतीय सिनेमा जगत को पहली सवाक फिल्म देने वाली ‘आलमआरा ‘ की भाषा हिंदी ही थी । आलम आरा से आरंभ हुई इस यात्रा ने ‘हिंदी मीडियम’ तक आते-आते अनेकों पड़ावों को पार किया। बॉलीवुड ने हिंदी को कभी विषय वस्तु के रूप में चुना तो कभी भाषिक माध्यम के रूप में अपनाया। 70-80 के दशक में चुपके-चुपके फिल्म ने जनमानस के सम्मुख यह प्रश्न उपस्थित किया कि यदि हम हिंदी भाषा की शास्त्रीयता को ही महत्व देते रहे तो वह एक दिन “जनसामान्य की भाषा” की पदवी खो देगी । इस सदी की बनी हुई आधुनिक फिल्मों जैसे ‘इंग्लिश विंग्लिश’,’ इंग्लिश मीडियम’, एवं ‘हिंदी मीडियम’ ने हिंदी भाषा के महत्व और समाज में आज भी उसके महत्वपूर्ण स्थान की विषय वस्तु को लेकर हिंदी के प्रचार प्रसार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
हिन्दी साहित्य और सिनेमा
हमारे मन मस्तिष्क पर पढे हुये से ज्यादा देखी और सुनी हुयी बातों का असर होता है, पठन में कल्पनाशीलता होती है, जबकि दृश्य या सुनी हुयी बातें यथार्थ के ज्यादा निकट होती हैं। हिन्दी के श्रेष्ठ साहित्य को चाहे वह उपन्यास हों या कहानियां समय समय पर फिल्मकारों ने उसे जन मानस तक पहुंचाने में अपनी अहम भूमिका निभाई है। चाहे वह 1963 में बनी फिल्म गोदान हो, 1990 में बनी गुनाहों का देवता हो, कृष्ण चंदर के उपन्यास पेशावर एक्स्पेस पर आधारित एंव यश चोपडा जी के निर्देसन में बनी वीरजारा हो, अमृता प्रीतम जी के उपन्यास पर आधारित फिल्म पिंजर हो, या फिर देवदास जिसका कई निर्देशकों ने अलग अलग काल में समाज के अनुसार उसका फिल्मांकन किया, चाहे चेतन भगवत के उपन्यास पर आधारित 3 इडियट्स , 2 स्टेट्स हो |
निष्कर्ष
वैसे तो हिंदी सिनेमा के एक एक फिल्म और कलाकार ने अपने अनुसार हिंदी का मान -सम्मान बढ़ाया है लेकिन इस छोटे से पोस्ट में हर किसी का जिक्र करना बड़ा ही मुश्किल है | यदि मैं सिर्फ उन फिल्म और कलाकार के नाम का वर्णन भी करूँ तो भी एक बुक कम पड़ जायेगा | इसलिए मैं अपने इस छोटे से पोस्ट के माध्यम से सभी को योगदान को प्रणाम करता हूँ |
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जय हिन्द
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