डिप्रेशन से बहरा निकलने का बेहतरीन तरीका
आज सुशांत सिंह राजपूत जैसा चमकता सितारा हमारे बीच से जा चूका है | जिन्होंने जिंदगी के बदले मौत को चुना और सदा के लिए गहरी नींद में सो गए और छोड़ गए लाखों सवाल आखिर क्यूँ सुशांत तुमने जिंदगी के बदले मौत को क्यों चुना ?
सुशांत सिंह राजपूत जो की इतने छोटे उम्र में इतनी बड़ी सटरडम हासिल की , जिंदिगी के इस मुकाम पर उन्हें आत्महत्या करने की क्या जरुरत थी | ना दौलत की कमी ना सोहरत की कमी , देखने से तो ऐसा नहीं लगता की उनके जिंदिगी में किसी चीज़ की कमी थी |
यदि लव -सव का चक्कर था भी तो ये भारत का सबसे एडवांस समाज है | जँहा लोग हर दिन रिलेशन बदलते रहते है | फिर इतनी सी छोटी बात पर आत्महत्या करने की क्या जरुरत थी | इनकी मौत का वजह डिप्रेशन बताया जा रहा है
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस (निम्हंस) ने 2016 में देश के 12 राज्यों में एक सर्वेक्षण करवाया था. इसके बाद कई चिंताजनक आंकड़े सामने आए हैं.| भारत में 0.3 से लेकर 1.2 फीसदी बच्चे डिप्रेशन में घिर रहे हैं और अगर इन्हें समय रहते डॉक्टरी मदद नहीं मिली तो सेहत और मानसिक स्वास्थ्य संबधी जटिलताए बढ़ सकती हैं.
इसी सर्वेक्षण से एक अंदाजा ये भी निकाला गया कि भारत के 15 करोड़ लोगों को किसी न किसी मानसिक समस्या की वजह से तत्काल डॉक्टरी मदद की ज़रूरत है, आंकड़ों के मुताबिक आबादी का 2.7 फ़ीसदी हिस्सा डिप्रेशन जैसे कॉमन मेंटल डिस्ऑर्डर से ग्रसित है.
वैसे तो मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूँ लेकिन मैंने बहुत छोटी उम्र में ही एक कहानी पढ़ा था | जिसको मैं जीवन में जब कभी किसी चीज़ को एक निश्चित समय से ज्यादा देर तक सोचता हूँ तो मैं वो फार्मूला अपनाता हूँ और अपने आप को बहुत ही सुकून में पता हूँ |
ये कहानी एक कॉलेज की जँहा एक प्रोफेसर अपने क्लास के लिए जाता है | ये मनोविज्ञान का क्लास था | प्रोफेसर क्लास में प्रवेश करता है उसके हाथ में एक काँच का ग्लास रहता है | प्रोफेसर वो ग्लास मेज़ पर रख देता है | और फिर एक राकेश को बुलाता है |
और क्लास के तरफ दिखाते हुए बोलता है ये ग्लास खली है | और फिर राकेश को उसका एक हाथ आगे करने को बोलता है ,राकेश अपना हाथ आगे करता है | प्रोफेसर वह खाली ग्लास उसके हाथ पर रख देता है और पूछता है
प्रोफ़ेसर -कैसा लग रहा है ?
राकेश – बहुत ही लाइट (हल्का ) लग रहा है |
उसी स्तिथि में 2 -3 मिनट छोड़ने के बाद फिर पूछता है
प्रोफ़ेसर -कैसा लग रहा है ?
राकेश – सर हल्का-हल्का दर्द हो रहा है |
प्रोफ़ेसर – ठीक है
फिर उसी स्तिथि में 5 मिनट रहने के बाद पूछता है
प्रोफ़ेसर -कैसा लग रहा है
राकेश – सर हाथ में बहुत दर्द हो रहा है
प्रोफ़ेसर – ठीक है ऐसे ही रहो |
पूरा क्लास की तरफ देखते हुए 10 मिनट बाद फिर पूछता है
प्रोफ़ेसर – अब कैसा लग रहा है
राकेश – रोते हुए सर बहुत ही ज्यादा दर्द हो रहा है |
प्रोफ़ेसर – जोर से चीखते हुए रख दो ग्लास
राकेश ग्लास मेज़ पर रखते हुए राहत की सांस लेते है |
प्रोफ़ेसर – (मुस्कुराते हुए ) अब कैसा लग रहा है
राकेश – (आँखों में अंशु के साथ ) सर बहुत सुकून मिला |
प्रोफसर राकेश को बैठने बोलता है और फिर बोलता है |
ये हाथ हमरा दिमाग था और ये खाली गिलास वह बात जिसे हम सोचते है , और जब हम उस बात को लगातार सोचते रहते है तो ये बात के कारन पहले हमें सर दर्द होता है, फिर हमरा नींद उड़ जाता है , फिर शरीर के दूसरे अंग काम करना बंद कर देते है | उसके बाद भी यदि हम सोचते रहते है तो हम पागल हो जाते है और अंत में हम खुद को खत्म कर लेते है |
प्रोफेसर बोलता है इसलिए जरुरी है की ऐसी स्तिथि से बचने के लिए हमें जोर से बोलना है ” ग्लास रख दो ” दो से तीन बार रिपीट करें देखें आपको बहुत ही ज्यादा सुकून मिलेगा |
दोस्तों उम्मीद करता हूँ आपको ये कहानी पसंद आया होगा | यदि पसंद आया तो कमेंट करें और जरूरतमं को शेयर करें | लोगों को डिप्रेशन से बहार निकलने में मदद करें
जय हिन्द
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मानसिक तनाव और बेचैनी पर बहुत ही प्रशंसनीय उद्धरण।
हार्दिक बधाई और आगामी भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
धन्यवाद