एक सामान्य मानव के जीवन में राष्ट्र का क्या महत्व है ?

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Indian Parliament

पिछले दिनों अफगानिस्तान में जो कुछ हुआ है, जिस तरह से तालिबान ने पुरे देश को अपने कब्जे में लिया है | देश के आम तो आम खास नागरिक भी देश को छोड़कर दूसरे देश में शरण लेने को मजबूर है | जब अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई और उनके मंत्रिमंडल के कई मंत्री को देश छोड़कर भागना पड़ा तो , आम नागरिक कि स्तिथि का तो कोई अंदाजा भी लगा सकता है | वँहा के नागरिक पूरी दुनियाँ से मदद माँग रहे है , लेकिन कोई भी देश अभीतक उसे मदद करने आगे नहीं आया है  | अफगानिस्तान के लोग किसी भी कीमत पर अपना जान बचाना चाहते है | हर दिन अफगानिस्तान से दर्दविदारक video , audio और news आ रहे है | वँहा के नागरिक में अजीब सा खौफ है | आखिर क्यूँ ? …….

जबकि ये तालिबानी भी ये दावं करते है कि वो भी अफगानिस्तान के ही बाशिंदे है , और उन्होंने अफगानिस्तान को आज़ाद कर लिया है | फिर भी अफगानिस्तान के लोग उन्हें support करने के बदले, देश छोड़ना बेहतर क्यूँ समझ रहे है ?

अफगानिस्तान कि घटना ने मेरे सामने भी एक सवाल बार बार खड़ा किया है कि ” एक आम मानव के जीवन में राष्ट्र का क्या महत्त्व है ? ” या कोई महत्त्व नहीं है ?

तो आज का मेरा पोस्ट इसी मुद्दे पर आधारित है | जिसमें मैं , इस मुद्दे के विभिन्न पहलु को देखेंगे और उसे समझने का प्रयास करेंगें |

राष्ट्र का शुरुआत कैसे हुआ ?

जब हम इतिहास में पाषाण-काल पढ़ते है , जिस समय मानव सभ्यता का विकास नहीं हुआ था | तब मानव और जानवर में कोई विशेष अंतर नहीं होता था | मनुष्य का जीवन असभ्यतापूर्ण, बर्बर तथा स्वार्थपूर्ण था। हर व्यक्ति अपने से कमजोर का शोषण करता था तथा बर्बरतापूर्ण जीवन व्यतीत करता था। लेकिन इनके ऊपर भी लगातार जंगल के खतरनाक जंगली जानवरों का खतरा बना रहता था | जिसके कारण धीरे -धीरे ये मानव अपना समूह बनाना शुरू किया | जिससे कारण ये खुद का और अपने बच्चे का जीवन भी बचा पाने में कामयाब होते थे , और उन्होंने अपने समूह के महत्त्व को समझते हुए अपने समूह का  लगातार विस्तार  किया ,और यंही से एक समाज , राज्य और राष्ट्र की बुनियाद रखा गया |

तो हम वर्त्तमान में जो, इतने बड़े बड़े राष्ट्र देखते है इसकी बुनियाद मानव समाज के सुरक्षा में निहित है | जिस अनजान मुसीबत से आप अकेले नहीं लड़ सकते है उससे आपका समाज , राज्य और राष्ट्र आसानी से लड़ सकता है | मानव सभ्यता के विकास में राष्ट्र का निर्माण सबसे महत्वपूर्ण घटना है। राष्ट्र के बिना मानव सभ्यता के विकास की कल्पना निरर्थक है।

एक नागरिक के प्रति राष्ट्र का क्या उत्तरदायित्व होता है ?

1. राष्ट्र का पहला काम है कि वह बुनियादी नियमों  का एक ऐसा समूह उपलब्ध कराये , जिससे समाज के सदस्यों में एक न्यूनतम समन्वय और विश्वास बना रहे |

2. राष्ट्र का दूसरा काम है कि यह स्पष्ट करना कि समाज में निर्णय लेने कि शक्ति किसके पास होगी | साथ ही यह भी तय करना है कि सरकार कैसे निर्मित होगी

3. राष्ट्र का तीसरा काम है कि वह सरकार द्वारा नागरिकों पर लागु किये जाने वाले कानूनों पर कुछ सीमाएँ लगाए | ये सीमायाँ इस रूप में मौलिक होती है कि सरकार कभी भी उसका उल्ल्घंन नहीं कर सकती है |

4. राष्ट्र का चौथा नियम काम यह है कि वह सरकार को ऐसी क्षमता प्रदान करें जिससे वह जनता कि आकांक्षाओं को पूरा कर सके और एक न्यायपूर्ण समाज कि स्थापना के लिए उचित परिस्थितों का निर्माण कर सके |

राष्ट्र के प्रति नागरिक का कर्तव्य क्या -क्या है ?

राष्ट्र के प्रति नागरिक का कर्तव्य क्या -क्या है ?

1. राष्ट्र एक ऐसा शब्द है, जिसमें एक नागरिक का संपूर्ण अस्तित्व समाहित होता है। एक व्यक्ति सर्वप्रथम, सामाजिक व पारिवारिक प्राणी न होकर एक राष्ट्रीय नागरिक होता है।अतः उसका पहला कर्तव्य अपने राष्ट्र के प्रति होता है। हम सभी को सर्वप्रथम अपने राष्ट्र धर्म का पालन करना चाहिए। राष्ट्र धर्म का meaning अलग-अलग नागरिक के लिए अलग हो सकता है | हमें इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि हमारे कार्य राष्ट्र के उत्थान में होना चाहिए , न कि राष्ट्र निर्माण के विरुद्ध | कोरोना के समय बहुत लोगों को हम पुलिस से झगड़ा करते देखें है लेकिन यदि आप सिर्फ मास्क पहन कर रहते है तो ये भी आपका राष्ट्र निर्माण में बहुत बड़ा योगदान है |

2. एक नागरिक के नाते हमारा कर्तव्य देश की एकता की भावना को बरकरार रखना है, जिसके द्वारा हम प्रगति के साथ-साथ मानव जाति को भी एक बराबर का अधिकार प्रदान कर सके। हमारा कर्तव्य राष्ट्र को भाषायी स्तर पर एक रूप में प्रस्तुत करना होना चाहिए। ‘भारत विविधता में एकता’ का राष्ट्र है। अत: हम सभी को सभी भाषा के लोगों को बराबर सम्मान करना चाहिए।

3. हम सदैव अपने अधिकारों की, अपने हक की आवाज बहुत जोर शोर से उठाते हैं, लेकिन हम कभी भी अपने उत्तरदायित्वों जो कि किसी भी राष्ट्र के नागरिक का प्रथम कर्तव्य होता है कि बात भी नहीं करते जबकि यदि हम अपने-अपने कर्तव्यों को पालन निष्ठापूर्ण तरीके से राष्ट्रहित में करें तो स्वत: ही अधिकार मिल जायेगा |

4. प्रत्येक नागरिक का सबसे पहला कर्तव्य है कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करें।

5. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्पराओं के महत्व को समझे तथा उसकी रक्षा करने में अपना योगदान दे। पर्यावरण की रक्षा करे।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे।

6. हम अपने सम्पति को बहुत महत्त्व देते है लेकिन सार्वजनिक संपत्ति का उतना ही ज्यादा नुकसान पहुंचाते है | जब कि हमरा कर्तव्य है कि हम सार्वजनिक सम्पति को न तो नुकसान पहुँचाये और न ही नुकसान होने दें |

7. हमें अपने बच्चों को उसके जीवन में राष्ट्र के महत्त्व को समझाना चाहिए | ताकि वो आगे चलकर देश का आदर्श नागरिक बन सके |

राष्ट्र भावना होने के दुष्परिणाम

अफगानिस्तान कि घटना से जो सबसे बड़ा मैसेज/सबक मिला है| वह यह है, कि चाहे आप कितना भी आमिर , ताकतवर , समर्थवान हो यदि  राष्ट्र कमजोर है तो आप कुछ भी नहीं है | आपको भी अफगानिस्तान के पूर्व -मंत्री शाह सआदत कि तरह  जर्मनी में पिज़्ज़ा delivery करना पड़ सकता है या फिर अफगानी संसद कि तरह दूसरे देश में जाकर रोना पड़ सकता है |

अफगानिस्तान कि घटना इतिहास कि कोई पहली घटना नहीं है | इससे पहले भारत के जम्मू कश्मीर में भी समृद्ध कश्मीरी पंडित को जम्मू कश्मीर से भगा दिया गया | आज भी कश्मीरी पंडित पुरे भारत के अलग – अलग कोने में शरण लेकर रह रहे है | लेकिन अभी तक कश्मीर लौटने का हिम्मत नहीं जुटा पा रहे है |

भारत कि गुलामी का भी एक बड़ा कारण देश के नागरिक और समाज में राष्ट्र भावना कि कमी रहा था |

आज भी हम अपने परिवार , समाज और देश में ऐसे कई नागरिक को देखते है जो अपने नागरिक कर्तव्य का पालन नहीं करते है | चंद पैसों के लिए राष्ट्र हित से समझौता करने से नहीं हिचकिचाते है | जबकि आपको मालूम होना चाहिए कि, जब देश ही नहीं बचेगा तो ,आपके करोड़ों और अरबों पैसे भी आपके किसी काम में नहीं आएगा |  यदि आप पैसे के बदले वोट करके एक गलत सरकार को चुनते है तो वो आपको मुसीबत में छोड़कर भाग जायेगा |

आपको ऐसे सरकार को चुनना चाहिए जो निस्वार्थ भाव से देश का सेवा करें | जो देश हित में कोई भी फैसला लेने से पीछे नहीं हटता हो , बल्कि मुश्किल समय में भी अपने नागरिक के साथ खड़ा रहता हो | तभी एक ताकतवर , शक्तिशाली और समर्थवान राष्ट का निर्माण संभव है |

इन सभी उदारहण से एक बात स्पष्ट है , एक राष्ट्र का मजबूत होना सबसे जरुरी है | इसलिए एक शशक्त राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान दें , और पुरे निष्ठा के साथ अपने नागरिक कर्तव्य का पालन करें |

तो इस पोस्ट को मैं गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ के इस कविता के साथ विराम देता हूँ |

वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥

जो जीवित जोश जगा न सका, उस जीवन में कुछ सार नहीं।

जो चल न सका संसार-संग, उसका होता संसार नहीं॥

जिसने साहस को छोड़ दिया, वह पहुँच सकेगा पार नहीं।

जिससे न जाति-उद्धार हुआ, होगा उसका उद्धार नहीं॥

जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रस-धार नहीं।

वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥

जिसकी मिट्टी में उगे बढ़े, पाया जिसमें दाना-पानी।

है माता-पिता बंधु जिसमें, हम हैं जिसके राजा-रानी॥

जिसने कि खजाने खोले हैं, नवरत्न दिये हैं लासानी।

जिस पर ज्ञानी भी मरते हैं, जिस पर है दुनिया दीवानी॥

उस पर है नहीं पसीजा जो, क्या है वह भू का भार नहीं।

वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥

निश्चित है निस्संशय निश्चित, है जान एक दिन जाने को।

है काल-दीप जलता हरदम, जल जाना है परवानों को॥

है लज्जा की यह बात शत्रु— आये आँखें दिखलाने को।

धिक्कार मर्दुमी को ऐसी, लानत मर्दाने बाने को॥

सब कुछ है अपने हाथों में, क्या तोप नहीं तलवार नहीं।

वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥

आशा करता हूँ कि आपको ये post पसंद आया होगा | यदि आपको ये Post पसंद आया है,तो इसे अपने मित्रों और प्रियजनों के साथ साझा करें , साथ ही अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म जैसे फेसबुक और व्हाट्सप्प पर भी शेयर करें | एक सही मैसेज फैलाना भी एक नागरिक कर्तव्य का ही भाग है |

इस पोस्ट में यदि आपको किसी प्रकार कि त्रुटि लगे तो आप कमेंट के माध्यम से मुझे बता सकते है | मैं इसे सुधारने के लिए प्रतिबद्ध हूँ | पूरा पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद|

जय हिन्द
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