क्या बदले की भावना है, महँगा सौदा है

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क्या बदले की भावना है, महँगा सौदा है

हम अपने जीवन में हर दिन अनगिनत मानव , पशु -पक्षी , स्तिथि -परिस्तिथि और भावना से टकराते है, जिसके कारण हमारे अंदर क्रोध का उत्पत्ति होता है | जिसके तत्पश्च्यात हमें उस मानव, पशु -पक्षी और स्तिथि -परिस्तिथि से बदला लेने का भावना पैदा होता है | क्रोध करना नुकसानदायक है, ये बात लगभग सभी जानते है |  लेकिन क्या आप जानते है की बदले की भावना भी महँगा सौदा है | ये आपको बिमार बनाता है , आपको कमजोर बनता है और आपके किसी भी तरह के दुश्मन से ज्यादा ताकतवर है और आपको उतना ही ज्यादा नुकसान पहुँचता है | लेकिन इससे लड़ने का तरीका शायद बहुत कम मानव को पता है, और जिसके पास ये गुण है वो मानव नहीं महामानव है |

तो दोस्तों आप तो ये समझ ही गए होंगे की आज का मेरा पोस्ट ” बदलने लेने की भावना ” के ऊपर आधारित है | इस पोस्ट की मदद से मैं आपको ये बताने वाला हूँ , कि ये भावना इतना नुकसानदेह कैसे है | और इस भावना को आप कैसे बदल सकते  है | साथ ही दुनियाँ के महान लोगों का इसके ऊपर क्या विचार है |

1.

शेक्सपियर ने कहा था  ” अपने दुश्मन के लिए नफरत की भट्टी को इतनी तेज मत करो कि आप खुद भी उसमें जल जायें “

बात सो टके सत्य है, क्या हमारे दुश्मन खुश नहीं होंगे , अगर वे जान जायें कि उनके प्रति नफरत हमारा खून जला रही है , हमें थका रही है, नर्वस कर रहा है , हमारी सुंदरता नष्ट कर रहा है , हमें हार्ट अटैक दे रहा है और हमरी उम्र कम कर रहा है |

अगर हम अपने दुश्मन से प्रेम नहीं कर सकते, तो हम कम से कम खुद से तो प्रेम करें | हमें खुद से तो इतना प्रेम करना चाहिए कि हम अपने दुश्मनों को इस बात कि अनुमति न दें कि वो हमारा सुख , शांति और सुंदरता को नियंत्रित करें |

इसको कहानी से समझते है, वैसे ये कहानी नहीं है ये सच्ची घटना है | ये घंटा द्वितीय विश्व युद्ध की है जॉर्ज रोर्ना स्वीडन में सालों तक वकील थी | परन्तु द्वितीय विश्व   युद्ध के बाद जॉर्ज वियना चली जाती है , उन्हें पैसे कि बहुत जरुरत रहता है और वो जॉब कि तलाश कर रही थी | चूँकि उन्हें कई भाषा का ज्ञान था और वो बोल और लिख लेती थी , इसलिए उनको उम्मीद थी कि उन्हें किसी ऐसी कंपनी में तो पत्र लिखने का काम मिल ही जायेगा जो आयात और निर्यात का काम करती है |  इसलिए वो उस तरह कि ज्यादातर कंपनी को पत्र लिखी , लेकिन ज्यादातर कंपनी ने द्वितीय विश्वयुद्ध का हवाला देकर , तत्काल मना कर दिया , लेकिन ये वादा भी किया जब जरुरत होगा तो उनको जरुरु बताया जायेगा…..  .

परन्तु एक आदमी ने जॉर्ज रोर्ना को चिट्टी लिखा, जिसमें उसने लिखा, ” मेरे बिज़नेस के बाड़े में अपने जो सोचा वो सही नहीं है | आप न सिर्फ गलत है , बल्कि मुर्ख भी है | मुझे किसी भी इस तरह के जॉब कि रेक्विरमेंट नहीं है | अगर मुझे जरुरत भी होती तो भी मैं आपको नौकरी पर नहीं रखता , क्यूँकि आप स्वीडिश भाषा ठीक से नहीं लिख पाते है | आपका चिट्टी गलती से भरा पड़ा है |

जब जॉर्ज रोर्ना ने उस पत्र को पढ़ी तो वह गुस्से से पागल हो गयी | इसकी हिम्मत तो देखो मुझसे  कह रहा है, तुम्हे  स्वीडिश भाषा लिखना नहीं आती ! खुद के पत्र में इतना गलती है और मुझे ज्ञान दे रहा है |

और गुस्से में ही जॉर्ज रोर्ना ने उसे एक पत्र लिखा, जिसे पढ़कर उस व्यक्ति का खून खोल जाये | किंतु ये सोचते -सोचते वो रुकी | उसने खुद से कहा , ” एक मिनट रुको तो सही | क्या पता वो आदमी सही कह रहा हो ? मैंने स्वीडिश भाषा सीखी जरुरु लेकिन वो मेरी मात्र भाषा नहीं है | इसलिए इसकी संभावना अधिक है की मुझ से कुछ गलतियाँ हो जाती हों, जिससे मैं अनभिज्ञ हूँ | अगर ऐसा है तो निश्चित रूप से मुझे ज्यादा अध्यन करना चाहिए ताकि मुझे नौकरी मिल सके | शायद इस व्यक्ति ने मेरी गलती बता कर मुझ पर एहसान किया है , हालाँकि उसका ऐसा कोई इरादा नहीं था | उसने पत्र सिर्फ इसलिए लिखा कि लिखने की शैली अप्रिय थी, उसके प्रति मेरी कृतग्यता कम नहीं हो जाती | इसलिए मैं पत्र लिखकर उसके इस एहसान के लिए उसे धन्यवाद दूँगा |

इसके बाद जॉर्ज रोर्ना ने वो पत्र फाड़कर , एक दूसरा पत्र लिखी और अपने गलत सूचना और पत्र में हुई अशुद्धियों के लिए माफ़ी मांगी , और ये वादा भी कि वो स्वीडिश भाषा सीखने में जयदा मेहनत करेगी | वो लिखती है ” आपके ही कारण मुझे आत्म -सुधार के पथ पर चलने कि प्रेरणा मिली है , इसलिए मैं आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ | “

कुछ दिन बाद  वो आदमी दुबारा से जॉर्ज रोर्ना को पत्र लिखता है और मिलने का बुलावा भेजता है | रोर्ना जाती है और उनको नौकरी भी मिल जाता है | जॉर्ज रोर्ना ने इस घटना से यह सीखी , ” मिठे जबाब से गुस्सा शांत हो जाता है | “

हो सकता है कि हम इतने बड़े संत न हों कि अपने दुश्मनों से प्रेम करें, परन्तु अपनी खुद कि सेहत और सुख के लिए हम कम से कम उन्हें माफ़ तो करके भूल ही सकते है | ये सबसे स्मार्ट तरीका है |

2.

कन्फूशियस ने कहा था ” आपको चोट पहुँचाया जाये या लूट लिया जाये, तो इसमें कोई नुकसान नहीं होता जब तक कि आप इसे लगातार याद रखने की कोशिश न करें “

जनरल आइज़नहावर का भी यही सोच था ” वो जिनको पसंद नहीं करते थे , उसके बाड़े में एक मिनट भी सोचकर अपना समय बर्बाद नहीं करते थे “

महात्मा गाँधी के साथ साऊथ अफ्रीका में जो हुआ वो सभी को मालूम है लेकिन आज 100 – 120 साल बाद सारा दुनियाँ महात्मा गाँधी को तो जनता है , लेकिन वो आदमी जो अपने आप को उस समय में बहुत ताकतवर समझता था | उसे कोई भी नहीं जानता है | आप सोचिए यदि गाँधी जी बदले कि भावना से काम करते, तो क्या आज पूरा दुनियाँ, गाँधी को जान पाता | इसलिए ये जरुरी है कि हम बदले की भावना से नहीं , कुछ करने कि भावना से काम करें | ये बदले की भावना , हमारे जीवन कि प्रोग्रेस के गाड़ी को पंचर कर देती है |

जर्मन दार्शनिक शॉपेनहार ने कहा थाअगर संभव हो तो किसी के भी प्रति शत्रुता नहीं पाली जाय

अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने कहा था ” कोई आदमी मुझे अपमानित नहीं कर सकता , जब तक मैं उसे इस बात कि इजाजत नहीं दूँगा “

अपने दुश्मनों को माफ़ करने और उन्हें भूलने का अचूक तरीका है , किसी ऐसे काम में लग जाना जो हमसे बहुत बड़ा हो | तब हम अपमानों और शत्रुताओं की परवाह नहीं करते है | हम अपने विराट लक्ष्य के आलावा बाकि सब भूल जाते है | इसके लिए आप उन महान लोगों का उदहारण ले सकते है , उन महान लोगों के जीवन में बहुत सारे शत्रु रहे होंगे , लेकिन उन्होंने अपना फोकस अपने बड़े लक्ष्य पर लगा के रखा , और अपने शत्रु से कभी विचलित नहीं हुए | इसलिए वो हस्ती महान हस्ती है |

जरा सोचिए : अमिताभ बच्चन यदि रेडियो FM वाले से लड़ते रहते तो ,क्या वो बॉलीवुड के महानायक बन पाते ?

महात्मा गाँधी स्वेत साउथ अफ्रीकी से क़ानूनी लड़ाई लड़ते रहते तो  क्या वो भारत के राष्ट्रपिता बन पाते ?

नरेंद्र मोदी यदि अपने ऊपर लगे आरोपों के लिए बार -बार पत्रकार से लड़ते रहते तो वो क्या वो भारत के प्रधान-मंत्री बन पाते  ?

आपके असा -पास भी ऐसे हजारो उदहारण है , आप उनको देखें और बदले कि भावना को बदल दें | यही आपके सफल जीवन का सार बन जायेगा और आप जीवन में सफल हो जायेंगे |

3.

ऐसा कहा जाता है अमेरिकी इतिहास में लिंकन से अधिक नफरत और आलोचना किसी दूसरे व्यक्ति की नहीं हुई है | परन्तु हर्ड्न कि अमर जीवनी के अनुसार लिंकन ने ” कभी लोगों को अपनी पसंद और नापसंद के आधार पर नहीं चुना | अगर कोई काम किया जाना था , तो उनमें ये समझ था कि उनका शत्रु भी इस काम को अच्छी तरह से कर सकता था | अगर किसी ने उनकी आलोचना की थी वो वो व्यक्तिगत दुर्वयवहार का दोषी था , परन्तु उस पद के लिए सबसे योग्य व्यक्ति था , तो लिंकन उसे वह पद उतनी से तत्परता से देते थे , जितनी तत्परता से अपने किसी मित्र को …..

लिंकन का मानना था कि ” किसी भी आदमी के काम के लिए उसका गुणगान नहीं करना चाहिए , न ही उसके किसी काम को करने या न करने के लिए उनकी जय्दा आलोचना करना चाहिए , क्यूँकि हम सभी स्थितियों , परिस्थितियों, माहौल , शिक्षा, सीखी हुई आदतों और अनुवांशिकता के शिशु है जो मनुष्यों को उसी रूप में ढालती है जैसे वो होते है और हमेशा रहेंगें | “

शायद लिंकन सही थे | अगर आपमें और मुझमें वही शारारिक, मानसिक तथा भावनात्मक लक्षण होते जो शत्रुओं को विरासत में मिले है और अगर जीवन ने हमारे साथ वही किया होता जो उसके साथ किया है, तो हम बिल्कुल उसी तरह व्यवहार करते जैसा वे करते है |

हमें इतना उदार होना चाहिए कि हम ये प्रार्थना दोहरा सकें ” हे महान आत्मा , मुझे किसी आदमी का निर्णय करने और उसकी आलोचना करने से दूर रखना , जब तक कि मैं उसके जूतों में दो सप्ताह तक न चल लूँ | “

निष्कर्ष :

अगर आप सुख -शांति का मानसिक आदत विकसित करना चाहते है और बदले की भावना खत्म करना चाहते है, तो ये नियम याद रखें :

अपने दुश्मनों से बदला लेने का प्रयास न करें , क्यूँकि ऐसा करते समय हम उन्हें जितना नुकसान पहुंचाते है | इसकी जगह हम वह करें जो जनरल आइजनहॉवर करते थेजिनको हम पसंद नहीं करते, उसके बाड़े में सोचने में एक मिनट भी बर्बाद करें | “

आशा करता हूँ ये पोस्ट आपके “बदले की भावना” को बदलने में कामयाब रहा होगा | यदि पोस्ट पसंद आया है तो कृपा करके अपना विचार जरूर शेयर करें | या आपके पास इससे सम्बंधित कोई कहानी या घटना है, तो आप मेरे साथ साझा कर सकते है | पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद

जय हिन्द

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