भारत के महान सपूत सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय

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भारत के महान सपूत सुभाष चंद्र बोस

सुभाष चंद्र बोस का, जिस तरह का व्यक्तित्व है उसके तुलना में हमारे इतिहास और पाठयक्रम में उतना बड़ा स्थान नहीं दिया गया है | भारत के आज़ादी में भारत माता के हज़ारों सपूत ने अपने-अपने तरीके से बलिदान दिया है, लेकिन उन में एक बात सामान्य था कि उन्होंने किसी के बनाये या बताये रास्ते पर चलकर आज़ादी का लड़ाई लड़ा था | कोई गाँधी जी के रास्ते पर चलकर शांति से आज़ादी लेना चाह रहा था | तो कोई सन 1957 में बनाये रानी लक्ष्मीबाई , तात्या टोपे और मंगल पांडे के रास्ते पर चल रहा था | लेकिन सुभाष चंद्र बोस ने अपना एक अलग ही रास्ता बनाये और अपने तरीके से आज़ादी कि लड़ाई रहा |

किसी के बताये रास्ते पर चलना और खुद रास्ता बनाने में बहुत ज्यादा अंतर होता है | उन्होंने बाकयदा पढ़ाई किये , दुनियाँ कि परिस्तिथि को समझने का प्रयास किया , उस समय बहुत कम भारतीय इतना अच्छा English पढ़ और बोल पता था | उन्होंने सर्वोच्चय प्रशासनिक सेवा का परीक्षा भी पास किये और England भी गए |

तो आज का मेरा पोस्ट सुभाष चंद्र बोस के जीवन -यात्रा पर आधारित है | इस पोस्ट में आप उनके प्रारंभिक जीवन , शिक्षा , भारत के आज़ादी में उनके योगदान और उनके विचार के प्रभाव के बाड़े में विस्तार से जानेगें | सुभाष चंद्र बोस के जीवन को जानने के लिए एक बार पूरा पोस्ट जरूर पढ़ें

प्राम्भिक जीवन और शिक्षा– Early Life and Education of Subhash Chandra Boss in Hindi

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में ओड़िशा के कटक में होता है | इनके पिता का नाम जानकी नाथ बोस और इनके माता का नाम प्रभावती देवी था | इनके पिता पेशे से वकील थे | सुभाष चंद्र बोस का परिवार बहुत बड़ा परिवार था | जब बहुत बड़ा परिवार होता है तो माता -पिता को सभी बच्चों को समय देना इतना आसान नहीं होता है |  जिसके कारण सुभाष चंद्र बोस introverts (जो खुद में डूबा रहता है , जो अपने feeling को ज्यादा शेयर नहीं करता है ) होते है | वो बचपन में शर्मीले और बहुत ही जय्दा मेहनती होते है | सुभाष चंद्र बोस बहुत ही ज्यादा दयालु स्वाभाव के थे | उन्हें कभी भी दूसरों का दुःख और तकलीफ देखा नहीं जाता था , वो बेचैन हो जाते थे |

5 साल के उम्र में वो पहलीबार स्कूल जाते है , जँहा अमूमन बच्चे स्कूल जाने के नाम पर बहुत ज़्यदा रोता है , सुभाष चंद्र बोस इसके उलट बहुत ही ज्यादा खुश होते है | सुभाष चंद्र बोस को स्कूल बहुत ही जय्दा रास आता था | वैसे भी जो घर में कम बात करता है उसे स्कूल या घर से बहार रहना बहुत पसंद आता है | सुभाष चंद्र बोस क्रिश्चन मिशनरी स्कूल में पढ़ते थे | स्कूल में भारत को बहुत हीन और वेस्टर्न को बहुत महान बताया जाता था , स्कूल का पूरा कार्यकर्म ब्रिटिश कल्चर को ध्यान में रख कर किया जाता था | स्कूल में बाइबिल भी पढ़ाया जाता था | लेकिन ये सब सुभाष चंद्र बोस को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था |

भेद -भाव उस समय चरम सीमा पर था , घर के बाहर ऐसे -ऐसे बोर्ड लगा रहता था ” कुत्ते और भारतीय को अंदर आना मना है ” | स्कूल में , गाड़ी पर , रास्ते में भेद भाव बहुत आम था | लेकिन नेता जी अपने बचपन में भी इनको करारा जबाब देते थे |

भारतीय शिक्षा का प्रभाव– Effect of Indian Education on Subhash Chandra Boss in Hindi

सुभाष चंद्र बोस जब 10 -12 साल के होते है तभी उनके हाथ स्वामी विवेकानंद का एक आर्टिकल लगता है | जिसे पढ़कर उनका पूरा thought process ही बदल जाता है | उस आर्टिकल में स्वामी विवेकानंद एक लाइन का प्रयोग करते है ” भगवान हर बार गरीब के रूप में ही आता है ” | सुभाष चंद्र का गरीब के प्रति करुणा और भी बढ़ जाता है | उन्होंने इसके बाद स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परहमहंस को पढ़ना शुरू करते है और इतना ज्यादा प्रभावित होते है कि उन्होंने सन्यासी बनने का एक तरह से फैसला कर लेते है | और वाकायदा इस काम में लग भी जाते है |

उनके पास इतना पैसा होता नहीं कि उनको सीधे मदद कर सके , इसलिए उन्होंने घर -घर जाकर भिक्षा मांगते है और कहते है ” मैं गरीब और भूखे लोग का मदद करता चाहता हूँ ” बहुत बड़ी मात्रा में लोग उनको अपने अपने तरह से दान करते है | सुभाष चंद्र बोस बहुत समय तक ये काम करते है | जब इनके माता -पिता को इसका पता चलता है , उन्हें अपने बेटे के बदले व्यवहार से बहुत दुःख होता है | उन्हें चिंता होता है आखिर ये कर किया रहा है | उनके माता- पिता उनको समझने का बहुत प्रयास करते, लेकिन सुभाष को सन्यासी बनने का शौक चढ़ चूका था |

तभी एक दिन उनके घर एक साधु आता है | सुभाष चंद्र बोस उस साधु से सन्यास के बाड़े में बहुत बात पूछते है | अंत में वो साधु एक ही बात कहता है ” माता -पिता में भगवान होता है , इसलिए हर दिन अपने माता -पिता को प्रणाम करना शुरू करो , तुम्हारा जिंदिगी बदल जयेगा” | उसके बाद अगली सुबह वो पहलीबार अपने माता -पिता को प्रणाम करते है | जिसके बाद उनके माता -पिता को समझ ही नहीं आता है आखिर ये लड़का अचानक से बदल कैसे गया | कल तक जो बात भी नहीं करता था आज प्रणाम कर रहा है | इस तरह उन्होंने बचपन से ही भारत के संस्कार और संस्कृति के काफी नजदीक से जान रहे थे और अपने जीवन में उसका अनुकरण कर रहे थे |

भारतीय प्रशासनिक सेवा का सफर– Journey of IAC in Hindi

बचपन के बाद सुभाष चंद्र बोस को उनके माता -पिता ने दाखिला करवा दिया प्रेसेंडेन्सी कॉलेज कोलकाता में | सुभाष चंद्र बोस की पर्सनालिटी को देखते हुए उन्हें कॉलेज का लीडर बना दिया जाता है |  लेकिन एक बहुत बड़ा घटना घट जाता है | कॉलेज में स्टूंडेंट और प्रोफेसर के बीच बहुत बड़ा झगड़ा हो जाता है | जिसका सारा आरोप सुभाष चंद्र बोस पर लगता है क्यूँकि वो लीडर होते है |

 जब उनको ये कहा जाता है कि विधार्थी ने प्रोफेस्सर को पीछे से पीटा है | तो सुभाष चंद्र बोस कहते है”  जी नहीं , हमने उन्हें सामने से मारा है ” | ये बात कहने का मतलब उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोप को स्वीकार करते है | फिर उनको कोर्ट में भी अपना बचाव करने का मौका मिलता है | लेकिन वँहा भी वो उल्टा कॉलेज प्रशासन पर भारतीय के साथ भेद -भाव का आरोप लगते है | सुभाष चंद्र बोस कॉलेज टॉपर होते है उसके बाद बाकायदा उनको बहार कर दिया है |

कोई लड़का जो कॉलेज से drop-out है वो अपने फ्यूचर के बाड़े में सोच भी नहीं सकता है | वैसे समय में उनके साथ कोई भी नहीं था, यँहा तक कि उनका परिवार भी उनके साथ नहीं था | उनका परिवार उनको कलंक समझने लगा था | लेकिन सुभाष चंद्र बोस तो सुभाष चंद्र बोस थे , ये उनका attitude था , वो कहते थे ” मैंने कुछ भी गलत नहीं किया ” ये था उनका सोच , जो उनको महान सुभाष सुभाष चंद्र बोस बनता है | ऐसा कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस , देश को अपने परिवार से ऊपर रखते थे ” |

बाद में किसी तरह उनका एडमिशन होता है | उसके बाद वो लंदन चले जाते है और मात्र 6 – 8 से महीने में IAC सिर्फ पास ही नहीं करते, बल्कि टॉपर (All India 4th Rank) होते है | एक सामन्य भारतीय लन्दन में जाकर टॉप करता है | ये पुरे भारतीय  के लिए गर्व का विषय था | लेकिन सुभाष चंद्र बोस ने जलियांवाला बाग के बाद , IAC को ठोकर मारकर , अपने देश सेवा का रास्ता चुन लेते हैं | 

सुभाष चंद्र बोस का बलिदान :– Sacrifice’s of Subhash Chandra Boss In Hindi

भारत कि आजादी का कारण कोई था तो वो सुभाष चंद्र बोस थे | ये बात हम नहीं उस समय के ब्रिटिश प्रधान -मंत्री एटली ने कहा था | 1955 में जब एक पत्रकार ने एटली से पूछता है कि ” आप तो world war – II जित चुके थे , आप और 100 साल तक भारत पर शासन कर सकते थे | फिर आपने भारत को आजाद क्यों किया ” |

तो एटली का जबाब था  ” भारत की आज़ादी का एक मात्र कारण थे सुभाष चंद्र बोस ” | 

ये तो पूरा भारत ही नहीं पूरी दुनियाँ जनता था कि सुभाष चंद्र बोस बहुत ही गजब के लीडर थे | लन्दन से लौटने के बाद वो एक्टिव पोलटिक्स में ज्वाइन करते है और भीड़ को जागरूक और मोटीवेट करना शुरू कर देते है | वो गजब के स्पीकर थे वो जब बोलते थे तो पूरा भीड़ पागल हो जाती थी | उन्होंने भारत कि आज़ादी के रफ़्तार को बहुत ही ज्यादा धार दे चुके थे | जिसके करना वो अंग्रेज हुकूमत के आँखों के नासूर बन जाते है , उनको 11 बार जेल में बंद किया जा चूका था | अब अँगरेज़ उनको खत्म करने का प्लान बनता है | लेकिन ये बात नेता जी को पता चल जाता है और वो नागालैंड के रस्ते देश छोड़ कर भाग चुके थे |

उनके जाने के बाद देश में एक अजीब तरह की बेचैनी था | हर कोई उनको मिस कर रहा था | लोग सोच रहे थे सुभाष मर गए या मार दिए गए | लेकिन देश का ये बेटा अपने देश की आजादी का डील करने पहले रूस जाते है , और स्टालिन से मिलते हैं और प्रस्ताव रखते है दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है | स्टालिन को भारत पर भरोसा नहीं होता है लेकिन सुभाष से बहुत ही ज्यादा प्रवाभित होता है | बाद में स्टालिन नेता जी को जर्मनी जाने का पूरा व्यवस्था करता है |

उस समय हीटलर पूरी दुनियाँ का सबसे क्रूर इंसान था | लेकिन सुभाष चंद्र बोस हीट्लर से भी मिलते है और उसे भारत के आज़ादी में मदद माँगता है | इसके बाद हीट्लर उस समय तो कुछ नहीं कहता है लेकिन उन्हें जापान भेजने का पूरा व्यवस्था करता है |

सुभाष चंद्र बोस बर्लिन से ही वो रेडियो की मदद से पहली बार भारतीय को सम्बोदित करते है और कहते हैमैं सुभाष चंद्र बोस बोल रहा हूँ और मैं जिन्दा हूँ ” | ये शब्द पुरे भारत में एक गजब के ऊर्जा का संचार किया | पूरा भारतीय आज़ादी की चोला पहन चूका था |

इसके बाद नेता जी पहुँचते है टोकियो और मिलते है जापान के प्रधानमंत्री से , जापान उनका स्वागत एक दोस्त की तरह करता है | आज हम भारत और जापान का जो रिश्ता देखते है उसकी शुरुआत सुभाष चंद्र बोस ने ही की थी | और जापान से शुरू होता है आजाद हिन्द फौज का कारवां |

ये हिस्सा हर कोई जनता है लेकिन इसके आगे का हिस्सा शायद बहुत कम लोग जाते है | लेकिन इससे आगे की कहानी शायद बहुत कम लोग जानते है, इसलिए हर किसी के आज़ादी के अपने मायने होते है |

होता क्या है जब सुभाष चंद्र बोस का आज़ाद हिन्द फौज हार जाती है तो इसके बाद ऐसा कँहा जाता है सुभाष चंद्र बोस का प्लेन क्रेश होता है , जिसके बाद इंडियन आर्मी और इंडियन नेवी ने अँगरेज़ का विरोध शुरू कर दिया | ऐसा कहा जाता है हर नेवी शीप पर इनका फोटो लगा दिया गया था | पूरा भारत में अंग्रेज़ो के प्रति नफरत और सुभाष के प्रति प्यार उम्र रहा था | आपको पता होना चाहिए जब किसी देश  सेना विद्रोही हो जाता है तो क्या होता है , देश आज़ाद होता है | और उस समय के प्रधान -मंत्री एटली को गृह-युद्ध का डर सता रहा था | जिसके बाद एटली ने भारत की आज़ादी का पूरा खासा तैयार किया था | 

नेता सुभाष चंद्र बोस जी के बारे में रोचक तथ्य

  • सुभाष चंद्र बोस जी स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह जी को बचाना चाहते थे और उन्होंने गांधी जी से अंग्रेजों को किया हुआ वादा तोड़ने के लिए भी कहा था, परंतु वे अपने उद्देश्य में नाकाम रहे।
  • वर्ष 1943 में ही आजाद हिंद बैंक ने 10 रुपए के सिक्के से लेकर 1 लाख रुपए के नोट जारी किए थे और एक लाख रुपए की नोट में नेता सुभाष चंद्र जी की तस्वीर भी छापी गई थी।
  • नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने देश के आज़ादी के बाद, हमारा देश कैसा होगा इसका एक पूरा स्वरुप तैयार कर लिए था | जिसमें हर एक भारतीय को जगह दिया गया था |
  • ऐसा कहा जाता है यदि नेता जी जिन्दा होते तो वो भारत के पहले प्रधान -मंत्री होते और हमारा देश आज कुछ और ही रहा होता | 
  • सुभाष चंद्र बोस गाँधी के नहीं उनके विचार के विरोधी थे |
  • सुभाष चंद्र बोस को बस आज़ादी चाहिए था,  चाहे जैसे भी मिले और जिस कीमत पर मिले, उन्हें मंजूर था |

सुभाष चंद्र बोस का मृत्यु – Death of Subhash Chandra Boss in Hindi

ऐसा कहा जाता है कि 1945 में जापान जाते समय नेता जी का विमान ताईवान में क्रेश हो गया, लेकिन उनकी बॉडी नहीं मिली थी, कुछ समय बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था. भारत सरकार ने इस दुर्घटना पर बहुत सी जांच कमिटी भी बैठाई, लेकिन आज भी इस बात की पुष्टि आज भी नहीं हुई है. मई 1956 में शाह नवाज कमिटी और 1970 में घोसला कमिटी , दोनों ने उनके मौत की पुष्टि करती है |

लेकिन इसके बाद 2006 में मुखर्जी कमिटी ने अपना रिपोर्ट सौंपा था और कँहा कि ” सुभाष चंद्र बोस का मौत प्लान क्रेश में नहीं हुआ था ” | उन दोनों समिति और मुखर्जी समिति के बीच सबसे बड़ा अंतर था मुखर्जी समिति ने बाकायदा ताईवान को पूछते है की क्या 18 अगस्त 1945 को वँहा कोई प्लेन क्रेश हुआ था ? , ताइवान इस बात से साफ इंकार करता है और कहता है 18 अगस्त 1945 को कोई प्लेन क्रेश नहीं हुआ था |

इनके मौत का एक और पहलु है , कुछ लोगों का दावा था कि सुभाष चंद्र बोस , भारत में ही मौनी बाबा के नाम से बहुत समय तक रहे | लेकिन 1990 के करीब मौनी बाबा का भी निधन हो जाता है और ये गुथी भी, गुथी ही रह रह जाता है |

आज भी सुभाष चंद्र बोस का मृत्यु भारत का सबसे बड़ा रहस्य में से एक है | आज भी इसके ऊपर खोज जारी है |

भारत सरकार ने भी नेता जी सुभाष चंद्र बोस को सच्ची श्रद्धांजलि देते हुए इस साल ( 23 जनवरी 2021 ) से हर साल नेता जी के जन्म दिवस 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रूप में मानाने का फैसला किया है |

निष्कर्ष :- Conclusions

नेता जी हमारे बीच भले ही नहीं है , लेकिन भारत का unsung hero का विचार आज भी हमारे बीच ज्योति की तरह पूरा भारत को प्रकशित कर रहा है | हमें नेता जी के आदर्शो पर चलने और इसे आत्म-साथ करने की जरुरत है | यदि आप नेता कि जीवन को विस्तार से पढ़ना चाहते है तो निचे दिए गए लिंक से पुस्तक खरीद कर पढ़ सकते है |

आशा करता हूँ ये पोस्ट आपको पढ़ने में अच्छा लगा होगा और इस पोस्ट को पढ़कर खुद को ऊर्जावान महसूस कर रहे होंगें | यदि आपको इस पोस्ट में किसी प्रकार का त्रुटि लगा हो तो आप हमें कमेंट के माध्यम से बता सकते है | पूरा पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद

जय हिन्द

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