पदम् श्री अम्मा तुलसी गौड़ की जीवन- गाथा

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आज अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मैं एक और पदम् श्री से सम्मानित महिला की जीवन -गाथा आपके बीच प्रस्तुत कर रहा हूँ | इस साल के पदम् श्री के लिस्ट को देख कर भारतीय सरकार को दिल से धन्यवाद करने का दिल करता है | भारत सरकार ने सच में वैसे लोगों को सम्मानित किया है जो इसके हक़दार थे |

मेरा पिछला पोस्ट बीज माता राहीबाई पंपोर के बाड़े में जो लिखा था, उसको आपलोगों ने ढेर सारा प्यार दिया जो मुझे इस तरह के और भी पोस्ट लिखने के लिए प्रेरित किया | तो आज मैं जिस महिला के बाड़े में बात कर रहा हूँ |

वो है जिन्हें ‘जंगलों की एनसाइक्लोपीडिया’ कहा जाता है। एनसाइक्लोपीडिया’ का मीनिंग तो आप जानते ही होंगे , कोई एनसाइक्लोपीडिया’ ऐसे तो नहीं बन जाता है ना ,  वो भी ऐसा व्यक्ति जिसने कभी स्कूल देखा ही ना हो , और ऐसे समाज से तलूक रखती है जिसे इस धरती का सबसे अनपढ़ समाज कहा जाता है यानि आदिवासी समाज | इस महान औरत का नाम तुलसी गौड़ है | आज तुलसी गौड़ का नाम पर्यावरण संरक्षण के सच्चे प्रहरी के तौर पर लिया जाता है। प्रकृति से अगाध प्रेम तथा जुड़ाव की वजह से उन्हें पेड़-पौधों के बारे में अद्भुत ज्ञान है। उनके पास भले ही कोई शैक्षणिक डिग्री नहीं है, लेकिन प्रकृति से जुड़ाव के बल पर उन्होंने वन विभाग में नौकरी भी की

72 साल के तुलसी गौड़ का जन्म कर्नाटक के अकोला तालुका के होनाली गांव में हुआ | तुलसी गौड़ के शुरुआती जीवन की ज्यादा जानकारी तो नहीं मिलती है |   क्यूंकि वे एक गरीब पारिवारिक पृष्ठभूमि के थे। लेकिन ऐसा बताया जाता है की तुलसी गौड़ा, अपने पिता को सिर्फ दो साल के उम्र में खो दि थीं, तब उन्होंने अपनी मां के साथ घर पर काम करना शुरू कर दिया, वो इतनी छोटी थी की यहां तक कि सीढ़ियों तक भी नहीं जा पाती थी।

तुलसी, गौड़ा गोविंद गौड़ा के साथ एक बच्चे के रूप में शादी कर दी गयी थी , पर उनके किस्मत में ख़ुशी थी ही नहीं | गोविंद गौड़ बीज का भंडारण किया करते थे | बहुत कम उम्र में ही  अपने पति को खो दिया और विधवा हो गईं। जिसके बाद अकेली तुलसी माई के अंदर पर्यावरण प्रेम ने उसे जन्म दिया। उन्होंने गाँव के लोगों के साथ काम करते हुए प्रतिदिन पाँच से छह रुपये कमा लेती थी । तुलसी गौड़ा वन में रहती थे और वो  बीज का स्टॉक करती थी और उसका  पौधे बना सकें। धीरे -धीरे बीज का स्टॉक करने वाले सारे लोग उस काम को छोड़ने लगे क्यंकि बहुत कम पैसे मिलने के कारण उनका गुजर-वसर भी नहीं हो पता था | लेकिन तुलसी गौड़ का जंगल प्रेम उन्हें रोके हुए था | वो छोटे-छोटे पौधों को अपने बच्चे की तरह देख -रेख करती थी | और तब तक उसका देख -भाल करती थी , जब तक पौधा पेड़ नहीं बन जाये | और ये भी अद्भुत बात है की उनके द्वारा रोपा हुआ एक भी पौधा  आज तक सूखा नहीं है | हम विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर अक्सर लोगों को एक पौधे के साथ 10 लोगों को सेल्फी लेते देखे है | एक औसत मानव अपने जीवन में मुश्किल से 10 पेड़ भी नहीं लगाता है | लेकिन तुलसी माई ने अकेले 1 लाख से ज्यादा पेड़ लगा चुकी और अभी भी लगा रही है | तुलसी गौड़ा पर पौधरोपण का जुनून तब सवार हुआ, जब उन्होंने देखा कि विकास के नाम पर निर्दोष जंगलों की कटाई की जा रही है। यह देख वह इतनी व्यथित हुईं कि उन्होंने पौधरोपण का सिलसिला शुरू कर दिया। एक अनपढ़ महिला होने के बावजूद वह समझती हैं कि पेड़-पौधों का संरक्षण किए बगैर खुशहाल भविष्य की कल्पना नहीं की सकती, लिहाजा अपने स्तर से इस काम में जुटी हुई हैं। जीवन के जिस दौर में लोग अमूमन बिस्तर पकड़ लेते हैं, उस उम्र में भी तुलसी सक्रियता से पौधों को जीवन देने में जुटी हुई हैं।

तुलसी गौड़ा को सदी का सच्चा पर्यावरण प्रेमी कहा जा सकता है। वह शाकाहारी हैं और एक या दो मिलियन से अधिक पेड़ उगा चुकी हैं। पर्यावरण के लिए एक महान प्रेम के साथ, तुलसीगौड़ा ने होनल्ली क्षेत्र के जंगलों, सरकारी कार्यालयों, स्कूलों, घरों और सड़कों पर पौधे रोपना शुरू कर दिया। वे प्रति वर्ष लगभग 30 हजार पौधे लगाने और खिलाने का काम करते हैं। उन्होंने जो पौधा रोपा और वह पौधा गर्व से आज हजारों लोगों को हवा और छाया दे रहा है। पर्यावरण के प्रति उनके प्रेम को देखकर, तत्कालीन वन अधिकारी, नालप्पा रेड्डी ने भी उन्हें मस्तिकती जंगल में पौधारोपण का काम दिया था। तुलसी अम्मा ने करीब 14 वर्षों तक विभाग में काम किया है। इस दौरान अपने हाथों से उन्होंने हजारों की संख्या में पेड़-पौधे रोपे हैं। उनके द्वारा रोपे गए ये पेड़-पौधे आज घने जंगल में तब्दील हो चुके हैं। भले ही वे अब सेवानिवृत्त हो चुकी हैं, फिर भी पेड़-पौधे रोपने का उनका जुनून जरा भी कम नहीं हुआ है। अभी भी जगह-जगह पेड़-पौधे रोप कर वे पर्यावरण संरक्षण के लिए अपनी मुहिम चला रही हैं।

तुलसी गौड़ा के लिए पर्यावरण प्रेम, जो एक वृक्ष वैज्ञानिक होने के लिए जाना जाता है, को वृक्ष वैज्ञानिक कहा जाता है। तुलसी अम्मा को जंगल में पेड़ों की 300 से अधिक प्रजातियों के बारे में जानकारी है, जैसे कि किस मौसम में पौधे रोपना है , कितना पानी की जरुरत है , कब उर्वरक देना है और कब फूल लगाना है। तुलसी कहते हैं, जंगल में हर पेड़ की नब्ज होती है। जो कोई भी अपने आस-पास के पेड़ों को नहीं काटता, वह अपने बच्चों की तरह पेड़ उगाता है।  वह लाखों पेड़ उगा चुकी है और आज भी अपना बीज का सग्रहण और  बीजारोपण कर रही है|

तुलसी अम्मा को पदम् श्री से पहले भी कई अवार्ड मिल चूका है जिसमें इंदिरा गांधी प्रियदर्शनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड, कर्नाटक राज्योत्सव अवार्ड और कविता मेमोरियल जैसे सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है | लेकिन वो कहती है जो आनंद मुझे पेड़ लगाने में मिलता है वो आनंद किसी अवार्ड में नहीं है | आज दूर दूर से लोग उनसे पेड़ -पौधों के किस्मों के बाड़े में जानने आते है | और तुलसी अम्मा उसी सादगी के साथ लोगों को अपना ज्ञान बांटती रहती है |

 दोस्तों तुलसी अम्मा के सपनों को साकार करने और इस धरती के लिए निःस्वार्थ भाव से न सही स्वार्थ भाव से ही सही कुछ पेड़ तो इस धरती के लिए और वन्यजीव को बच्चाने के लिए और पंक्षियों के चहचहाट के वास्ते कुछ पेड़ तो लगा ही सकते है | वरना इन पंक्षियों के आवाज़ को हमको youtube पर ही देखना और सुनना पड़ेगा |

तो आपको ये पोस्ट कैसा लगा बतायेगा जरूर और यही जरुरत महसूस हो तो शेयर भी कीजिएगा |

जय हिन्द

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