मिल्खा सिंह के शून्य से शिखर तक कि दस्ता

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मिल्खा सिंह

Flying सिख के नाम से प्रशिद्ध श्री मिल्खा सिंह जी का 91 साल के आयु में निधन हो गया | मिल्खा सिंह जी का पूरा जीवन एक मिसाल की तरह है | मिल्खा सिंह जी का जीवन हमें जितना प्रेरित करता हैं  , उतना शायद ही किसी दूसरे sports person का करता है | इनका जीवन बहुत ही struggle भरा रहा | इन्होंने मात्र 8 साल के उम्र में पाकिस्तान से दौड़ते हुए भारत आ गए थे | मिल्खा सिंह जी का जीवन एक अद्भुत प्रेरणा का स्रोत है | मिल्खा सिंह आज तक भारत के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित धावक हैं कामनवेल्थ खेलो में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाले वे पहले भारतीय है  खेलो में उनके अतुल्य योगदान के लिये भारत सरकार ने उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्म श्री से भी सम्मानित किया है 

प्राम्भिक जीवन

मिल्खा सिंह का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब में एक सिख राठौर परिवार में 20 नवम्बर 1929 को हुआ था। अपने माँ-बाप की कुल 15 संतानों में वह एक थे। उनके कई भाई-बहन बाल्यकाल में ही गुजर गए थे। भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिलखा सिंह ने अपने माँ-बाप और भाई-बहन खो दिये । मिल्खा सिंह के आँखों के सामने उनके पुरे परिवार को मार दिया जाता है | उनके छोटी सी बस्ती को आगा के हवाले झोंक दिया गया | उनके पिता का आखिरी शब्द था भाग मिल्खा भाग …… | ये सीन जब आप भाग मिल्खा भाग में देखते है तो सभी की ऑंखें भर आती है | इतना दर्द विदारक दृश्य जो किसी के कलेजे को चीर दे | वो दृश्य मिल्खा सिंह के आँखों के सामने कई साल तक नाचते रहा |

मिल्खा सिंह मात्र 8 साल के उम्र में वँहा से भागते है, और  किसी तरह दिल्ली आते है |  दिल्ली में वह अपनी शदी-शुदा बहन के घर पर बिताते है, इसके आलावा कुछ समय शरणार्थी शिविरों में रहने के बाद वह दिल्ली के शाहदरा इलाके में एक पुनर्स्थापित बस्ती में भी रहे। उनका बचपन बहुत ही मुश्किल में बिता, इतना मुश्किल में कि जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती है |

ऐसा बताया जाता है कि उन्होंने अपने जीवन में इतना आभाव देखा था कि उनको जब पता चला कि सेना में भर्ती होने पर उनको हर दिन दुध पिने को मिलेगा | सिर्फ इस बात से प्रभावित होकर उन्होंने सेना में भर्ती होने का फैसला कर किया | तीन बार reject कर दिये जाने के बाद भी मिल्खा सिंह सेना में भर्ती होने की कोशिश करते रहे और अंततः वर्ष 1952 में वह सेना की विद्युत मैकेनिकल इंजीनियरिंग शाखा में शामिल होने में सफल हो गये।

जँहा एक बार सशस्त्र बल के उनके कोच हवलदार गुरुदेव सिंह ने उन्हें दौड़ (रेस) के लिए प्रेरितकिया, तब से वह अपना अभ्यास कड़ी मेहनत के साथ करने लगे। सेना में भर्ती होने के बाद जब उनको पहली बार जूता मिला था , उन्होंने जूता को पैर में पहनने के बदले , जूता को अपने सीने पर रखकर रात भर सोये थे | उन्होंने उस दिन से पहले तक जो भी दौड़ लगाई थी , उन्होंने कभी भी जूता नहीं पहना था |

उनके जीवन में ऐसे कई अनुभव थे जो उन्होंने पहली बार महसूस किये थे | उनका जीवन में दुःख का वो आलम था कि ऐसी छोटी -छोटी बात भी उनको बहुत रोमांचित करता था |

शादी और परिवारिक जीवन

मिल्खा सिंह को अपने जीवन में तीन बार प्यार हुआ , जिसके बाद इनका दिल महिला वॉलीबॉल टीम की कप्तान निर्मल कौर पर आया | हालांकि इनकी प्रेम कहानी की शुरुआत 1960 में हुई थी, जब दोनों की मुलाकात दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में हुई।

मिल्खा सिंह और निर्मल कौर के अफेयर की खबरें सुर्खियों में आने लगी थीं। हालांकि, तब तक दोनों ने अपनी बाकी की जिंदगी साथ बिताने का फैसला कर लिया था, लेकिन दोनों के लिए अपनी फैमिली को मनाना काफी मुश्किल था। मिल्खा सिंह और निर्मल कौर के परिवार उनके रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं थे, तब उस समय पंजाब के मुख्यमंत्री श्री प्रताप सिंह उनकी मदद करने और उनके परिवारों से बात करने के लिए आगे आए थे। मिल्खा सिंह और निर्मल कौर साल 1962 में शादी के बंधन में बंधे थे और 9 साल की उम्र के अंतर के बावजूद दोनों ने 59 साल तक एक साथ अपना जीवन बिताया।

जीव मिल्खा सिंह उनके एकलौते पुत्र हैं, जो शीर्ष रैंकिंग के अंतर्राष्ट्रीय पेशेवर गोल्फर हैं।

मिल्खा सिंह के शून्य से शिखर तक का सफर

मिल्खा सिंह वर्ष 1956 में पटियाला में हुए राष्ट्रीय खेलों के समय से सुर्खियों में आये। वर्ष 1958 में कटक में हुए राष्ट्रीय खेलों में उन्होंने 200 और 400 मीटर के रिकॉर्ड तोड़ दिए, और इस प्रकार भारत के अब तक के सफलतम धावक बने। कुछ समय के लिए वे 400 मी के विश्व कीर्तिमान धारक भी रहे।

राष्ट्रीय स्तर पर सफल होने के बाद उन्होंने पहली बार भारत से बहार किसी प्रतियोगिता में भाग लिया , उन्होंने सन 1956 के मेलबोर्न ओलिंपिक खेलों में 200 और 400 मीटर में भारत का प्रतिनिधित्व किया पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुभव न होने के कारण सफल नहीं हो पाए लेकिन वँहा पर एक अच्छी बात हुई कि उनको  400 मीटर प्रतियोगिता के विजेता चार्ल्स जेंकिंस के साथ मुलाकात करने का मौका मिला | चार्ल्स जेंकिस ने उन्हें बहुत ज्यादा प्रेरित किया साथ ही Taining के नए तरीकों से अवगत भी कराया | मेलबोर्न से लौटने के बाद उन्होंने अपने आप पर बहुत ज्यादा मेहनत किया | जिसका परिणाम उनको आनेवाले सालों में मिला |

कार्डिफ़, वेल्स, United States में 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण जीतने के बाद अपने लंबे बालों के साथ पदक जितने पर पूरा खेल-जगत उन्हें जानने लगा। इस प्रकार वह राष्ट्रमंडल खेलों के व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले खिलाडी बन गए |

इसके अतिरिक्त वह वर्ष 1958 के एशियाई खेलों (200 मीटर और 400 मीटर श्रेणियों में) और वर्ष 1962 के एशियाई खेलों (200 मीटर श्रेणी में) में भी कुछ रिकॉर्ड अपने नाम किये थे।

 इसके कुछ समय बाद ही उन्हें पाकिस्तान में दौड़ने का न्यौता मिला, लेकिन बचपन की घटनाओं की वजह से वे वहाँ जाना नहीं चाहते थे। उनका मुकाबला एशिया के सबसे तेज धावक माने जाने वाले अब्दुल खालिक से था। जब ये बात (मिल्खा सिंह पाकिस्तान जाना नहीं चाहते है ) मीडिया में आया तो पाकिस्तानी मीडिया ने मिल्खा सिंह का बहुत मजाक उड़ाया , और यँहा तक कहा कि ” वो अब्दुल खालिक के सामने कुछ भी नहीं है , इसलिए डर  कर बहाना बना रहे है ” लेकिन, प्रधानमंत्री नेहरू के समझाने पर वह इसके लिए राजी हो गए। जिसके बाद मिल्खा सिंह पाकिस्तान जाते है, और ऐसा दौड़ते है कि उनके प्रतिद्वन्द्वियों  उनसे काफी पीछे छूट जाते है | उनके दौड़ से  अधिकांशतः मुस्लिम दर्शक इतने प्रभावित हुए कि पूरी तरह बुर्कानशीन औरतों ने भी इस महान धावक को गुज़रते देखने के लिए अपने नक़ाब उतार लिए थे, जिसके बाद पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने मिल्खा सिंह को ‘द फ्लाइंग सिख’ कि उपाधि  दिया | तब से मिल्खा सिंह flying sikh कहे जाने लगे |

वो रेस जितने के बाद मिल्खा सिंह अपने पैतृक गांव गोविंदपुरा (आज के पाकिस्तानी पंजाब में मुजफ्फरगढ़ शहर से कुछ दूर पर बसा गांव) गए | जँहा उन्होंने अपने पूर्वजों को याद कर बहुत रोये थे |

मिल्खा सिंह के जीवन कि महत्वपूर्ण घटना

1. रोम ओलिंपिक खेल शुरू होने से कुछ वर्ष पहले से ही मिल्खा अपने खेल जीवन के सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में थे और ऐसा माना जा रहा था की इन खेलों में मिल्खा पदक जरूर प्राप्त करेंगे। रोम खेलों से कुछ समय पूर्व मिल्खा ने फ्रांस में 45.8 सेकंड्स का कीर्तिमान भी बनाया था। 400 मीटर दौड़ में मिल्खा सिंह ने पूर्व ओलिंपिक रिकॉर्ड तो जरूर तोड़ा पर चौथे स्थान के साथ पदक से वंचित रह गए। 250 मीटर की दूरी तक दौड़ में सबसे आगे रहने वाले मिल्खा ने एक ऐसी भूल कर दी जिसका पछतावा उन्हें आज भी है। उन्हें लगा की वो अपने आप को अंत तक उसी गति पर शायद नहीं रख पाएंगे और पीछे मुड़कर अपने प्रतिद्वंदियों को देखने लगे जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा और वह धावक जिससे स्वर्ण की आशा थी कांस्य भी नहीं जीत पाया। मिल्खा को आज तक उस बात का मलाल है। उस वक्त भी वह रो पड़े थे

2. रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह इतने लोकप्रिय हो गए थे कि जब वह स्टेडियम में घुसते थे, दर्शक उनका जोशपूर्वक तरीके से स्वागत करते थे । यद्यपि वहाँ वे  टॉप के खिलाड़ी नहीं थे, परन्तु सर्वश्रेष्ठ धावकों में उनका नाम अवश्य शुमार था । उनकी लोकप्रियता का दूसरा कारण उनका बढ़ी हुई दाढ़ी व लंबे बाल थे । लोग उस वक्त सिख धर्म के बारे में अधिक नहीं जानते थे । अत: लोगों को लगता था कि कोई साधु इतनी अच्छी दौड़ लगा रहा है ।

3.  टोक्यो एशियाई खेलों में मिल्खा ने 200 और 400 मीटर की दौड़ जीतकर भारतीय एथलेटिक्स के लिए नये इतिहास की रचना की। मिल्खा ने एक स्थान पर लिखा है, ‘मैंने पहले दिन 400 मीटर दौड़ में भाग लिया। जीत का मुझे पहले से ही विश्वास था, क्योंकि एशियाई क्षेत्र में मेरा कीर्तिमान था। शुरू-शुरू में जो तनाव था वह स्टार्टर की पिस्टौल की आवाज के साथ सफूचक्कर हो गया। आशा के अनुसार मैंने सबसे पहले फीते को छुआ। मैंने नया रिकार्ड कायम किया था।

4.  जापान के सम्राट ने मेरे गले में स्वर्ण पदक पहनाया। उस क्षण का रोमांच मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता। अगले दिन 200 मीटर की दौड़ थी। इसमें मेरा पाकिस्तान के अब्दुल खालिक के साथ कड़ा मुकाबला था। खालिक 100 मीटर का विजेता था। दौड़ शुरू हुई। हम दोनों के कदम एक साथ पड़ रहे थे। फिनिशिंग टेप से तीन मीटर पहले मेरी टांग की मांसपेशी खिंच गयी और मैं लड़खड़ाकर गिर पड़ा।  मैं फिनिशिंग लाइन पर ही गिरा था। फोटो फिनिश में मैं विजेता घोषित हुआ और एशिया का सर्वश्रेष्ठ एथलीट भी। जापान के सम्राट ने उस समय मुझसे जो शब्द कहे थे वह मैं कभी नहीं भूल सकता। उन्होंने मुझसे कहा था – दौड़ना जारी रखोगे तो तुम्हें विश्व का सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त हो सकता है। दौड़ना जारी रखो।‘

रिकॉर्ड, पुरस्कार और सम्मान

  • वर्ष 1958 के एशियाई खेलों की 200 मीटर रेस में – प्रथम
  • वर्ष 1958 के एशियाई खेलों की 400 मीटर रेस में – प्रथम
  • वर्ष 1958 के राष्ट्रमंडल खेलों की 440 गज रेस में – प्रथम
  • वर्ष 1959 में – पद्मश्री श्री पुरस्कार
  • 400 मीटर में वर्ष 1962 के एशियाई खेलों की 400 मीटर रेस में – प्रथम
  • वर्ष 1962 के एशियाई खेलों की 4*400 रिले रेस में – प्रथम
  • वर्ष 1964 के कलकत्ता राष्ट्रीय खेलों की 400 मीटर रेस में – द्वितीय
  • 1 जुलाई 2012 को उन्हें भारत का सबसे सफल धावक माना गया जिन्होंने ओलंपिक्स खेलो में लगभग 20 पदक अपने नाम किये है। यह अपनेआप में ही एक रिकॉर्ड है।
  • मिल्खा सिंह ने अपने जीते गए सभी पदकों कों देश के नाम समर्पित कर दिया था, पहले उनके मैडल्स को जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में रखा गया था, लेकिन फिर बाद में पटियाला के एक गेम्स म्यूजियम में मिल्खा सिंह को मिले मैडल्स को ट्रांसफर कर दिया गया।
  • साल 2012 में रोम ओलंपिक के 400 मीटर की दौड़ मे पहने जूते मिल्खा सिंह ने एक चैरिटी संस्था को नीलामी में दे दिया था।

Take-away from Life of मिल्खा सिंह

जिंदगी ऐसे जियो कि मिसाल बन जाये : मिल्खा सिंह के जीवन में दुःख नहीं था , बल्कि दुखों का पहाड़ था | लेकिन मिल्खा से इसके बाबजूद अपने जिंदिगी को ऐसे जिए की पुरे देश के लिए उनका जीवन एक मिसाल बन गया | इसलिए दुःख से घबराये नहीं बल्कि शांति से बिना शोर मचाये अपना काम करते रहिए | एक दिन आपका सफलता शोर मचायेगा | आप सोचिए उस हालत में पाकिस्तान से कितने लोग आये होंगें , लेकिन सिर्फ जानते है तो सिर्फ एक मिल्खा सिंह को , क्यूँ ?

क्यूँकि मिल्खा सिंह कि सफलता ने इतना शोर मचाया कि पूरा दुनियाँ का ध्यान अपनी ओर खींच लिया | मिल्खा सिंह ने खेलों में उस समय सफलता प्राप्त की जब खिलाड़ियों के लिए कोई सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं, न ही उनके लिए किसी ट्रेनिंग की व्यवस्था थी । आज इतने वर्षों बाद भी कोई एथलीट ओलंपिक में पदक पाने में कामयाब नहीं हो सका है ।

मिल्खा सिंह के जीवन के बाड़े में यदि और भी जानना चाहते है तो मिल्खा सिंह ने अपनी बेटी सोनिया संवलका के साथ मिलकर अपनी बायोग्राफी ‘The Race Of My Life’ लिखी थी। मिल्खा सिंह के इस किताब से प्रभावित होकर बॉलीवुड के प्रसिद्द निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने उनके प्रेरणादायी जीवन पर एक फिल्म बनाई थी, जिसका नाम ‘भाग मिल्खा भाग’ था। यह फिल्म 12 जुलाई, 2013 में रिलीज हुई थी। फिल्म में मिल्खा सिंह का किरदार फिल्म जगत के मशहूर अभिनेता फरहान अख्तर ने निभाया था। यह फिल्म दर्शकों द्धारा काफी पसंद की गई थी, इस फिल्म को 2014 में बेस्ट एंटरटेनमेंट फिल्म का पुरस्कार भी मिला था। यदि आप अभी तक इस मूवी को नहीं देखे है तो आपको जरूर देखना चाहिए | ये फिल्म आपको मिल्खा सिंह के जीवन के बड़े में जानने कि उत्सुकता बड़ा देगा |

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जय हिन्द
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